समारोह-आयोजक एवं भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा– राहुल सांकृत्यायन का इलाहाबाद के प्रति विशेष प्रेम उल्लेखनीय रहा है। वे जब भी अपनी यात्राओं को पूर्ण करने के बाद वापस होते थे तब थकान मिटाने और सारस्वत खुराक पाकर पुन: ऊर्जस्वित होने के लिए इलाहाबाद ही आते थे। उनकी अधिकतर पुस्तकों का लेखन, मुद्रण तथा प्रकाशन इलाहाबाद से ही हुआ है।
हम जब उनकी कृति 'मेरी जीवन-यात्रा का अध्ययन करते हैं तब ज्ञात होता है कि वे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', महादेवी वर्मा आदिक सर्जनधर्मियों से किस प्रकार रचनात्मक प्रेरणा ग्रहण करते थे।
हिन्दी-विभाग, शासकीय महाविद्यालय, हटा, दमोह (म० प्र०) की सहायक अध्यापक आशा राठौर ने कहा– राहुल सांकृत्यायन ऐसे साहित्य-सर्जकों में से थे, जिनके जीवन और साहित्य में एकरूपता दिखायी देती हैं। उनका सम्पूर्ण साहित्य उनके अन्तर्मन के द्वन्द्व, ज्ञान के प्रति तीव्र जिज्ञासा, दिमाग़ी ग़ुलामी से मुक्ति की छटपटाहट का साहित्य है। उनके अन्दर ग़ज़ब की तर्कशक्ति थी। बिना तर्क की कसौटी पर कसे वे किसी भी प्रकार के ज्ञान को स्वीकार नहीं करते थे।