
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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एक–
नृप निरीह निकृष्ट नटी, नागर नयना नार।
नलिन नागरक नागरी, नाशक नारक क्षार।।
दो–
मुकुर मुकुल मन-मन्त्रणा,काकुल कंक कुलीन।
चारु चित्त चातुर चरित, दंशदायिनी दीन।।
तीन–
मनका मन मनका मती, मन मनका मतभेद।
मनोयोग मरघट मरण, मन-मानस मनभेद।।
तीन–
जो भजते तक़दीर को, पाते कहीँ न ठौर।
आभूषण ही कर्म है, क्योँ भजते हो और।।
चार–
रामनाम तो आड़ है, समझो गहरी चाल।
लाज-शर्म से दूर हैँ, ज्योँ गैंडे की खाल।।
पाँच–
चतुर चोर चालाक हैँ, निर्मम निर्दय नीच।
पापी पाप पवारता, कलह कलंकी कीच।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ८ फ़रवरी, २०२५ ईसवी।)