● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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इस धूर्त्त को अच्छी तरह से पहचानिए, जो स्वयं को हिन्दीभाषा/सामान्य हिन्दी का ‘सर’ कहता है; परन्तु इसका हिन्दीबोध नितान्त निचले स्तर का है। यह यूट्यूब पर अपनी कक्षा चलाता है और स्वयं को अवधी का जानकार कहता है, जबकि इसे ‘अवधी बोली’ की समझ तक नहीँ। यह विद्यार्थियोँ को ‘श्री रामचरितमानस’ की चौपाइयोँ को ‘लोकोक्ति’ बताता है। इतना ही नहीँ, अमरनाथ गुप्ता गोस्वामी तुलसीदास की अति लोकप्रिय चौपाई को ग़लत तरीक़े से लिखता है और उसका अर्थ भी अनुपयुक्त बताता है, जोकि विद्यार्थियोँ के भविष्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस मे लिखा है :–
“मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवहुसु दसरथ अजिर बिहारी।।”
उपर्युक्त चौपाई को सस्ती लोकप्रियता पानेवाला यूट्यूबर लिखता है, जिसे मैने उसके पोस्टर पर घेरा लगाकर दिखाया है :–
“मंगल भवन अमंगलहारी।
द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी।।”
अमरनाथ गुप्ता स्वयं को अवधी का जानकार बताता है; परन्तु उसे यह ज्ञान नहीँ कि अवधी बोली के अन्तर्गत ‘तालव्य श’ का प्रयोग नहीँ किया जाता, इसीलिए अवधी बोली मे रचा गया महाकाव्य ‘श्री रामचरितमानस’ मे ‘श’ का व्यवहार कहीँ नहीँ दिखता। यूट्यूबर अमरनाथ गुप्ता ने ”डंके की चोट पर” ‘दसरथ’ शब्द को ‘दशरथ’ दिखाकर विद्यार्थियोँ को भ्रमित कर दिया है। इतना ही नहीँ, उसे यह भी ज्ञात नहीँ कि जब किसी की रचना को उद्धृत किया जाता है तब उसे युगल उद्धरणचिह्न के अन्तर्गत रखा जाता है एवं उसमे बिना कोई बदलाव किये, उसे प्रस्तुत किया जाता है, जबकि उद्धत मनोवृत्ति का धनी यूट्यूबर अमरनाथ गुप्ता ने चौपाई ही ग़लत लिख दी है, जिसे आप दिखाये गये इसके पोस्टर मे देख सकते हैँ। इस शख़्स ने ‘द्रवहुसु’ के स्थान पर ‘द्रवउ सो’ तथा ‘बिहारी’ के स्थान पर ‘विहारी’ लिखे हैँ। इतना ही नहीँ, इसने ‘अमंगलहारी’ लिखा है, जबकि तुलसीदास ने ‘अमंगल’ और ‘हारी’ को अलग-अलग लिखा है। बात यहीँ तक नहीँ रही है, बल्कि अमरनाथ गुप्ता अपने वीडियो देखनेवाले विद्यार्थियोँ के भविष्य के साथ क्रूर मज़ाक़ करते हुए, जिन शब्दोँ के अर्थ बताये हैँ, वे सर्वथा हास्यास्पद हैँ। विद्यार्थी-घातक अमरनाथ गुप्ता ने चौपाई के किसी चरण मे न तो एकल पूर्ण विरामचिह्न का प्रयोग किया है और न ही युगल पूर्ण विरामचिह्न का।
हम अब अपने विद्यार्थियोँ को उस अल्पज्ञ यूट्यूबर-द्वारा बताये गये अर्थ से परिचित कराते हैँ।
वह लिखता है, “द्रवउ माने ‘द्रवित होइए’ अर्थात् दया कीजिए, सो माने ‘वे’, अजिर माने ‘आँगन’, बिहारी माने ‘विहार’ अर्थात् ‘विचरण करने वाले’।”
ग़ज़ब का दिमाग़ पाया है, बाज़ारू शिक्षक ने! उसके ज़बान से इतनी बातेँ सुनने के बाद से तो उसकी शैक्षिक योग्यता पर ही स्वाभाविक रूप से प्रश्नचिह्न खड़े हो जाते हैँ।
यहाँ दो बातेँ सुस्पष्ट हो चुकी हैँ :– पहली, उसे चौपाई मे प्रयुक्त शब्दोँ का सही अर्थ नहीँ मालूम; दूसरी, उसे चौपाई के अर्थ की बिलकुल समझ नहीँ। यदि उसे चौपाई का अर्थ ज्ञात रहता तो बात-व्यवहार मे ‘विदूषक’ की भूमिका मे हरदम दिखनेवाला अमरनाथ गुप्ता चौपाई का उपयुक्त अर्थ बताता।
(क्रमश:)