‘हिन्दीरेडियो-नाट्यशिल्प’ कृति का लोकार्पण एवं रंगकर्मियों को ‘रंगमंच-शिखर सम्मान’


'सर्जनपीठ' एवं 'भारतीय सांस्कृतिक परिषद्' के संयुक्त तत्त्वावधान मे हिन्दीरेडियो-नाट्यशिल्पकार स्मृति-शेष डॉ० राधेश्याम उपाध्याय-कृत 'हिन्दी रेडियो नाट्य शिल्प' कृति का लोकार्पण समारोह-अध्यक्ष भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, मुख्य अतिथि लखनऊ से पधारे साहित्यकार बन्धुकुशावर्ती तथा विशिष्ट अतिथि डॉ० दिनेश गर्ग ने ९ मार्च को 'बॉयो-वेद कृषि अनुसंधान संस्थान' के सभागार मे किया। उस पुस्तक की प्रस्तुति उनकी सुयोग्य पुत्री, कवयित्री उर्वशी उपाध्याय ने की है।

इसी अवसर पर रंगमंच के क्षेत्र मे उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए समारोह-अध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि ने प्रयागराज के विशिष्ट रंगकर्मियों :– अनिलरंजन भौमिक, सुषमा शर्मा, अभिलाष नारायण, अजय मुखर्जी तथा  प्रिया मिश्र को अंगवस्त्र, स्मृतिचिह्न तथा सम्मानपत्र अर्पण कर, 'रंगमंच-शिखर सम्मान' से आभूषित किया। सम्मानित रंगकर्मियों ने सम्मान के प्रति अपने भावोद्गार व्यक्त किये।
  
समारोह के मुख्य अतिथि बन्धुकुशावर्ती ने कहा– इस कृति मे विश्वस्तर पर रेडियो-नाटक के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन मे आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया– रेडियो-नाटक मे किसी भी दृश्य से परिचित कराने के लिए ध्वनि-प्रभाव और संवाद को प्रमुखता दी जाती है, तभी वह श्रोताओं तक सम्प्रेषित हो पाता है। इसमे संवादों मे प्रभावपूर्ण विविधता का होना अनिवार्य है, तभी पात्रों से सम्बन्धित जानकारी, पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ तथा नाटक का पूर्ण कथानक श्रोताओं के लिए ग्रहणीय हो पाता है।

विशिष्ट अतिथि डॉ० दिनेश गर्ग ने कहा–  रेडियो-नाटक की आज भी उपयोगिता और महत्ता है।

'हिन्दीरेडियो-नाट्यशिल्प की अवधारणा और आवश्यकता' विषय पर एक बौद्धिक और परिसंवाद का आयोजन किया गया, जिसमे रंगकर्मी और साहित्यकार अजामिल ने कहा– आज के आकाशवाणी मे रेडियो-नाटक के नाम पर 'मन की बात' सुनायी जाती है और 'मनमानी' की जाती है।

रंगकर्मी अभिलाष नारायण ने बताया– रेडियो-नाटक मे यदि सात्त्विक अभिनय नहीं होता तो वह बेमानी कही जायेगी। रेडियो-नाटकों में हम शब्दों से चित्र लगाते हैं।
दुर्गेश दुबे ने कहा– उर्वशी उपाध्याय ने अपने पिता के साहित्य और संस्कृति को संयोजित करते हुए, यहाँ प्रस्तुत किया है।

डॉ० शम्भुनाथ त्रिपाठी ‘अंशुल’ ने कहा– अवस्था का अनुकरण ही नाटक है।

डॉ० अनन्तकुमार गुप्ता ने भी विचार व्यक्त किया।
उर्वशी उपाध्याय ने बताया– बिखरी हुई सामग्री को एक जगह लाने का मेरा प्रयास रहा है।

इसी अवसर पर सभागार मे उपस्थित समस्त अभ्यागतगण को हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से नववर्ष की दैनन्दिनी भेंट की गयी।

अन्त मे राष्ट्रगान-गायन के साथ समारोह सम्पन्न किया गया। समाजशास्त्री प्रो० रवि मिश्र ने कार्य-संचालन किया। ‘भारतीय सांस्कृतिक परिषद्’ के पदाधिकारी सतीश गुप्ता ने कृतज्ञता-ज्ञापन किया।