असम राज्य का तेजपुर कस्बा वैसे तो बड़ा रमणीक स्थान है।
अपने देश में सूरज देवता सबसे पहले इसी क्षेत्र से अपनी यात्रा शुरू करते हैं। तेजपुर में सुबह उठकर हिमालय की तरफ देखिए तो सफेद चांदी चारो तरफ बिखरी होती है। इस क्षेत्र में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है और प्रदूषण की दूर-दूर तक कोई समस्या नहीं है। शहर जैसी कोई भीड़ -भाड़, ट्रैफिक, चिल्ल-पों भी नहीं है। उत्तर पूर्व के किसी भी राज्य की तरह यहां भी महिलाएं और युवतियां सुंदर होती हैं और पुरुष बुढ़ापे तक युवा से दिखते हैं।
इन सब खूबियों के कारण तेजपुर घूमने के लिए, कुछ दिन रहने के लिए तो अच्छी जगह है पर अधिक दिन रहने के लिए उतना ही बेकार स्थान है। क्योंकि तेजपुर के लिए परिवहन के साधन सुलभ नहीं है। गुवाहाटी से तेजपुर जाना एक छोटी मोटी जंग जीतने के बराबर है। महीने में एक दो दिन बंद होना सामान्य सी बात है। उल्फा जैसे तमाम उग्रवादी संगठनों का भी आतंक बना रहता है।
तेजपुर में बड़े बच्चों के पढ़ने के लिए पर्याप्त उपयुक्त शिक्षण संस्थान नहीं है। भूजल हल्का पीला, तेल जैसा है। उग्रवादियों के अलावा यहां जंगली जानवरों विशेषकर हाथी,बंदर, सांपों का भयंकर आतंक है। भूकंप बिन बुलाए मेहमान की तरह कभी भी झटका दे जाते हैं। कभी हल्के से तो कभी तेज से तेजपुर को हिला जाते हैं।
यहां ह्यूमिडिटी बहुत अधिक है इसलिए पसीने वाली, चिपचिपी गर्मी पड़ती है। एक बार पहना गया कपड़ा दोबारा नहीं पहना जा सकता है क्योंकि कपड़ों में पसीने के सफेद दाग दिखने लगते हैं। यहां पर खाने-पीने का ज्यादातर सामान मैदानी क्षेत्रों से आता है। इसलिए सब्जी, फल, अनाज, ड्राई फ्रूट सभी महंगे मिलते हैं। गुवाहाटी से मैदानी क्षेत्र को चलने वाली सभी अच्छी रेलगाड़ियां सुबह ही चलती हैं। अतः घर वापस आने के लिए शाम को ही तेजपुर से निकलना पड़ता है और फिर पूरी रात जगकर अगली सुबह ट्रेन पकड़नी होती है। वायुसेना स्टेशन , तेजपुर के गेट से बाहर निकलते ही सुनसान एरिया शुरू हो जाता है। कब क्या घटना हो जाये, कहा नहीं जा सकता है।
शायद इन्हीं सब कारणों से जब लोगों की पोस्टिंग तेजपुर आती थी तो उनका मुँह उतर जाता था। फिर साथी सांत्वना देते कि एक टेन्योर उत्तर पूर्व का काट लो , अगली पोस्टिंग मैदानी क्षेत्र में आ जायेगी। इसीलिए जब तेज़पुर से मैदानी क्षेत्रों में पोस्टिंग आती थी तो लोग अपने सभी जानने वालों को तेजपुर स्टेशन से कुछ ही दूर स्थित प्रसिद्ध हालेश्वर मंदिर में खिचड़ी का प्रसाद खिलाया करते थे और भगवान हालेश्वर से प्रार्थना करते थे कि –
“हे भोलेनाथ, अब दोबारा इस क्षेत्र में नहीं भेजना।”
‘सिटी ऑफ जॉय’ (कोलकाता) जैसे बड़े , सस्ते और भारत के हर हिस्से से जुड़े हुए शहर से जब मेरी पोस्टिंग तेजपुर आई तो मेरा दिल एक बार के लिए तो बैठ ही गया। ऐसा लगा कि जैसे मुझे स्वर्ग से सीधे नरक में पटक दिया गया हो। मुझे महसूस होने लगा कि जैसे मेरे शरीर में हीमोग्लोबिन अचानक से कम हो गया है और मुझे चक्कर आने जैसा महसूस हो रहा है।
फौज की खास बात यह है आपको कोई भी सही या काम दे दिया जाए, कहीं भी पोस्टिंग , टीडी भेज दिया जाए , आप सिविल की तरह धरने पर नहीं बैठ सकते, लाल झंडा नहीं उठा सकते । कोई पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक विक्टिम कार्ड नहीं खेल सकते। इसलिए मेरे पास भी तेजपुर जाने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था। कई साथियों ने मुझे सहानुभूति दी कि यह चार साल भी ‘कट’ जाएंगे। दुःख-सुख तो जीवन में लगा ही रहता है। कुछ तो इतने दुखी होकर मिले गोया कि -“अब जो होना था, वह तो हो चुका। बाकी अखबार में पढ़ लेंगे। “
खैर, इन झंझावातों से जब मन कुछ शांत हुआ तो भविष्य की योजना बनाने लगा। मैंने यह सोचा कि अपने परिवार को यहीं बैरकपुर में रख दूंगा। अकेले तेजपुर में 4 साल ‘काट’ लूंगा। फिर सोचा कि एक बार अकेले जाकर देख आता हूं, अगर माहौल ठीक लगा तो फैमिली लेकर जाऊंगा। इसी उधेड़बुन में था कि मुझे याद आया कि तेजपुर में मेरे मित्र आशीष सिंह की पोस्टिंग है। उनसे बात करना ठीक रहेगा।
आशीष मेरे साथ एयर फोर्स अकादमी हैदराबाद में रह चुके थे। हालांकि वह एडमिन स्टाफ में थे और मैं तकनीकी शाखा में। लेकिन चूंकि वह मेरे गृह जनपद रायबरेली के थे इसलिए उनके साथ मेरे पारिवारिक संबंध थे। मेरी पोस्टिंग जब हैदराबाद से कोलकाता आई थी, तो वह मुझे विदा करने भी आये थे। अतः उसी शाम मैंने आशीष को बताया कि मेरी पोस्टिंग तेजपुर आ गई है। सोच रहा हूं एक बार अकेले आ कर देख लूं। अगर ठीक रहेगा तो फैमिली ले आऊंगा। आशीष छूटते ही बोले-” सर मेरे रहते आपको कोई भी चिंता करने की जरूरत नहीं है । आप फैमिली लेकर आइए। सब व्यवस्था हो जाएगी ।” आशीष ने यह बात पूरे विश्वास और अधिकार से कही थी ।
आशीष ने मुझे यह भी बता दिया था कि वैसे तो असम भारत का ही हिस्सा है लेकिन शेष भारत का सिम यहां पर कार्य नहीं करता है । अतः सभी जरूरी नंबर डायरी में नोट कर लेना और इमरजेंसी में किसी पीसीओ बूथ से फोन कर लेना। दूसरी बात यह है कि ऐसी ट्रेन से गुवाहाटी आना कि वह शनिवार रात या रविवार सुबह को गुवाहाटी पहुंचे। ताकि गुवाहाटी स्टेशन के बाहर से तेजपुर वायुसेना स्टेशन के लिए जाने वाली सरकारी बस मिल सके। सरकारी बस गुवाहाटी स्टेशन के बाहर ही मिल जाएगी और वायुसेना स्टेशन के अंदर तक छोड़ देगी। अन्य किसी दिन आएंगे तो प्राइवेट बस या विंगर से आना पड़ेगा जो गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से कुछ दूरी से मिलेंगी और तेजपुर के मिशन चराली या अरुणाचल की तरफ जाने वाली बस हुई तो वायुसेना स्टेशन तेजपुर के बाहर दो किलोमीटर पहले मेन रोड पर छोड़ देगी। आपके पास सामान और परिवार रहेगा इसलिए बार-बार बदलने में दिक्कत पड़ेगी। अतः सरकारी बस ही बेहतर रहेगी।
आशीष की बताई हुई सारी बातों का ध्यान रखते हुए मैंने ऐसी ट्रेन से रिज़र्वेशन कराया कि रविवार सुबह गुवाहाटी पहुंच गया। अब विडंबना देखिए कि वहां पर मेरे पास फोन था , फोन में पैसे भी थे और बैटरी भी फुल थी। लेकिन उससे मैं किसी को कॉल नहीं कर सकता था । अतः एक पीसीओ से कॉल करके आशीष को बताया कि मैं गुवाहाटी पहुंच गया हूं । आशीष बोले कि सर स्टेशन के बाहर ही वायुसेना स्टेशन तेजपुर की बस खड़ी है। आशीष के कहे अनुसार मैं उस बस में बैठ गया और करीब 3 घंटे की यात्रा के बाद जब मिशन चराली पहुंचा तो बस के ड्राइवर के पास फोन आया कि आपकी गाड़ी में वीके सिंह सर बैठे हैं , उनको आप सीधे मेरे घर ले आइएगा। कहीं और छोड़ने की जरूरत नहीं है। ड्राइवर आशीष का दोस्त था। इसलिए सभी सवारियों को छोड़ने के बाद वह गाड़ी लेकर सीधा आशीष के सरकारी आवास पहुंच गया। उस समय जनवरी का महीना था और भयंकर ठंड पड़ रही थी। आशीष ने चाय पानी, मिठाई आदि से हम लोगों का भरपूर स्वागत किया।
थोड़ा आराम करने के बाद बाद मैंने आशीष से कहा कि जब तक मुझे सरकारी आवास नहीं मिल जाता तब तक के लिए रहने की व्यवस्था कहीं कर दो। मैंने सुना है कि यहां पर एक गेस्ट रूम भी है। उसमें मेरे लिए एक रूम बुक कर दो। इस पर आशीष लगभग गुस्सा होते हुए बोले-” सर जब तक मैं हूं तब तक आपको कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। आपको जब तक अच्छा सरकारी आवास नहीं मिलता, तब तक आप मेरे घर में ही रहेंगे।” मैं चुप हो गया।
जैसा कि सभी वायुसैनिकों के साथ होता है आशीष के पास भी एक ही बेड था। रात में हम सभी के लिए बेड पर सोने की व्यवस्था करके वह खुद जनवरी की कड़ाके की ठंड में सपरिवार जमीन पर बिस्तर बिछा कर सोने लगे। मुझसे यह देखा नहीं जाता था। लेकिन आशीष की जिद और अपनेपन के आगे मैं विवश था।
दूसरे दिन सोमवार को मैंने ऑर्डरली रूम में रिपोर्ट किया तो क्लर्क ने बताया कि कई आवास खाली हैं लेकिन पुराने क्वार्टर में। नया क्वार्टर चाहिए तो आठ-दस दिन का इंतजार करना पड़ेगा। मैंने कहा कि आप मुझे कोई भी आवास दे दो। मैं रह लूंगा। इस पर क्लर्क बोला – ” सर, ए के सिंह सर (आशीष) ने मना किया है। वह बोल के गए हैं कि जब नए क्वार्टर में फर्स्ट फ्लोर मिले तभी देना। “
बताते चलूं कि तेजपुर में ग्राउंड फ्लोर में कीड़े मकोड़ों, सांपों और सीलन की दिक्कत रहती है। टॉप फ्लोर में सीमेंट वाली छत नहीं होती है। एस्बेस्टस की छत में बारिश और धूप दोनों में ही समस्या होती है क्योंकि बारिश में तेज़ आवाज आएगी और गर्मी में भयंकर तपन महसूस होगी। दो मंजिल ऊपर चढ़ने-उतरने में जो दिक्कत होती है सो अलग।
मैंने आशीष से मिलकर इस बात पर आपत्ति जताई तो तो वह बोले -” आप क्यों अनावश्यक लोड ले रहे हैं। मैं एडमिन में हूं मुझे सारी जानकारी रहती है। आपको सबसे अच्छा और नया क्वार्टर जल्द ही मिलेगा आप इंतजार करिए।
“लेकिन तुम सपरिवार जमीन पर सोते हो , मुझे यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।” मैंने कहा।
आशीष बोले -” सर जब मुझे दिक्कत नहीं है तो आप क्यों दिल पर बोझ ले रहे हैं। आज चलो स्टेशन के अंदर स्थित मंदिर घूम आते हैं। “
आशीष ने बात बदल दी।
इसके बाद अगले दस दिन तक आशीष जमीन पर सपरिवार सोते रहे। हमारे लिए खुशी- खुशी खाने पीने, चाय नाश्ते की व्यवस्था करते रहे। जब मुझे नए क्वार्टर में वह भी फर्स्ट फ्लोर मिला तभी मुझे वहां से जाने दिया। कुछ ही समय बाद आशीष की पोस्टिंग तेजपुर से बंगलौर आ गई और मैंने भारी मन से उन्हें विदा किया।
संयोग कुछ ऐसा हुआ कि आशीष बैंगलोर से दिल्ली आ गए और मैं भी तेजपुर से चंडीगढ़ होते हुए दिल्ली आ गया। मैं अब सिविलियन बन चुका हूँ, ऐसे संस्थान में सेवा कर रहा हूँ जहां पर सेवानिवृत्त होने तक कोई पोस्टिंग , ट्रांसफर नहीं होना है। लेकिन आशीष अभी भी वायुसेना में हैं, इसलिए उनके पैरों में चक्र अभी भी बना हुआ है। जूनियर वारंट ऑफिसर ए के सिंह की पोस्टिंग अब चेन्नई आ गई है। कल कनॉट प्लेस के सागर रत्न रेस्टोरेंट में उन्हें बिदाई भोज देते समय आंखे नम हो गई। लेकिन यह सोचकर मन को मना लिया कि दुनिया गोल है, हम जल्द ही फिर मिलेंगे।
दोस्त दिल्ली से दूर गया है, दिल से नहीं।