कमज़ोर बुनियाद

आकांक्षा मिश्रा-


जिंदगी कितनी उबड़-खाबड़ रास्तों को तय करती हुई चलती रहती है । शुरुआत भी कठिन और अंत भी, मिलते हुए राहगीर भी छल द्वन्द्व से भरे हुए है हुकूमत का अच्छा नकाब चेहरे पर लपेटे हुए छल करने के लिए तत्पर । यदि पूछना चाहू तुम्हे क्या अधिकार है छल करने का ? जबाब मिलने की गुंजाइश नही । मौनरूपी आवरण से ढका हुआ चेहरा मासूमियत लिए दौड़ रहा फिर नए छल -द्वन्द के साथ, आकलन नही यथार्थ से जानने की कोशिश । जिनका विस्तारण अभी नए सिरे से बाकी है खामियाजा भुगतने को मासूम तैयार है ,तुम फिर सवाल में उल्फत भरने की कोशिश करो कई सवाल तुम्हारी तरफ होंगे कायरो की तरह ,मक्कारों की तरह चुभते हुए धिक्कारते हुए तुम्हे पहचानने की कोशिश में ।

शायद तुम्हारा भ्रम हो “यह संसार विश्वास करने योग्य है” लेकिन मेरा अंदाजा सही है हमेशा की तरह ‘यह संसार विश्वास करने योग्य नही है’ मैंने नही तुमने इसे साबित कर दिया ‘प्रेम अपने वश में विवाह पर माता -पिता का अधिकार है ‘ । प्रेम बड़ा छिछला हो गया तुम्हारी तरह अधिकार का रास्ता थोप दिया गया जन्मदाता पर क्योंकि जीवन दान का दिया अंश है और कर्जदार सभी है चुकाते है प्रेम को त्याग कर साबित करने में कोई कोर कसर नही बाकी या समझ फेर है । हँसी आती है खुद पर या अपने निर्माण किये रास्ते पर क्यों ऐसा है ? बताओ तुम अपने बनाये गए रास्ते पर चलना सहज ही है फिर भ्रम कैसा ?

हैरत होती उस मन ,हृदय को पढ़कर जहाँ मन अधिकार से विह्वल ,हृदय अपराध से पीड़ित स्पष्टता की बात सुनकर बड़ी ऊब होती है शायद तुम्हे भी क्रन्तिकारी लहजा प्रेम में देखे गए बड़े निराले रहे होंगे लोग तुम्हे सिर्फ कायर बनते देखा है । अपने ही बात पर मुकरना किस विश्वास की मजबूत नींव है । बुनियाद जिसकी कमजोर हो उसकी नींव कभी मजबूत नही होती ।

अब यही याद आता है या सुनने पर यकीन होता है खैर यह तो गाना है सुना जा सकता है ‘ अपनी बात पे जो गया मुकर…. ‘ उसकी क्या बात की जाय फिर भी मुकर्रर में फरियाद करते है ।