यदि बुजुर्ग जानकी प्रसाद झोपड़ी मे तो आवास प्लस किसके लिए?

बेशर्म लोकतन्त्र

हरदोई जिले के माधौगंज ब्लॉक की ग्राम सभा कुरसठ खुर्द देहात के मंशाखेड़ा निवासी 72 वर्षीय जानकी प्रसाद कुर्मी अपने ही गांव में झुग्गी-झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। सरकारी योजनाओं की रोशनी उनके अंधेरे घर तक नहीं पहुंच सकी है।

जानकी प्रसाद के पास सिर्फ 3 बीघा खेत है, जिससे मुश्किल से गुजारा चलता है। उनके तीन बेटे—रमेश गांव में, कमलेश कानपुर में, और शिवशंकर एक खोखे पर दुकान चलाकर किसी तरह जीवन चला रहे हैं। लेकिन सरकार की आवास योजना में उनका नाम न होने से वे आज भी दूसरों की दीवार के सहारे छप्पर डालकर जीने को मजबूर हैं।

उन्होंने 24 नवंबर 2023 को डीएम से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान देने की मांग की थी। आईजीआरएस संख्या 40015523010409 के तहत जांच हुई। और ग्राम विकास अधिकारी ने शिकायत को सही भी पाया। फिर भी आवास सूची में नाम न होने की वजह से उन्हें घर देने से इनकार कर दिया गया।

अब यहाँ कुछ प्रश्न अपने आप उभरते हैं। जब शिकायत सही पाई गई, तो आखिर इस बुजुर्ग को मकान क्यों नहीं दिया जा रहा? क्या प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ केवल रसूखदारों और जान-पहचान वालों तक ही सीमित है? 72 साल का बुजुर्ग कब तक झोपड़ी में रहेगा? क्या गरीब होने की सजा यही है कि इंसान बिना छत के ही मर जाए? जब घोटालेबाजों को करोड़ों के बंगले मिल सकते हैं, तो जानकी प्रसाद को एक छोटा सा घर क्यों नहीं?

यदि शासन-प्रशासन इन गरीब बुजुर्ग दम्पति को जल्द आवास मुहैया नहीं करा पाता है तो यह मामला प्रशासनिक लापरवाही का एक और नमूना होगा। वैसे भी राजनीति के प्रांगण मे गरीबों की कोई हैसियत नहीं हैं। ये बात अलग है कि लोकतन्त्र की डोली इन्हीं काँधों पर टिकी है।