अपनी बातों से भला क्यों भरमाते हो?

—आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

जुल्म करके भी तुम मुकर जाते हो,
ऐसी फ़ित्रत कहाँ से तुम लाते हो?
दर्द का एहसास बेशक होता है मुझे,
जब मुश्किलात में ख़ुद को पाते हो।
मेरा रहगुज़र अब कहीं दिखता नहीं,
बूढ़े ज़ख़्म को फिर क्यों दिखाते हो?
उसकी कैफ़ीयत अब सवाल है करती,
उस शख़्स को भला क्यों सताते हो?
कुछ लोग रस्सी को साँप बनाते यों ही,
अपनी बातों से भला क्यों भरमाते हो?
ज़मीं पे पाँव तो तुम रख नहीं सकते,
अपने जाल में फिर क्यों फँसाते हो?
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ जुलाई, २०२० ईसवी)