विषाक्त उत्सवधर्मिता!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

दीपवर्तिका की ज्वलनशीलता
लोकमानस की सहनशीलता।
पृथक्-पृथक् पथ पर परिलक्षित
दो समानान्तर दूरी पर गतिमान।
संवाद-हेतु अवकाश पर प्रश्नचिह्न
किस-हेतु लोक का दीप-प्रज्वलन?
मात्र आमोद-प्रमोद का विज्ञापन?
दीप-प्रज्वलन निहितार्थ से नितान्त परे,
प्रकृतिसंहारक मनोवृत्ति का प्रदर्शन?
प्रतिस्पर्द्धा का नग्न प्रदर्शन?
पर्यावरण का आर्त स्वर
निष्प्रभ आत्मिकता की ज्योति;
भौतिकता की दीपमाला का प्रकीर्णन।
मन-प्राण-आत्मा इन सबसे पृथक्
स्नेह, सौजन्य, सह-अनुभूति
सदाशयता के मार्ग पर चलायमान।
कालचक्र की नैसर्गिक गतिशीलता;
एक और दीपमालिका के प्रत्यागमन में
प्रतीक्षारत नयन; दीपवर्तिका की देहजलन!
भावी क्रूर सम्भावनाओं से प्रकृति का रुदन।
विस्फारित और कौतुक नेत्रों का विचलन।
क्रूर मनुष्य का आचरण; इतस्तत: भ्रमण।
निसर्ग में अनिर्वचनीय कालुष्य की परिव्याप्ति
स्थावर-जंगम का आर्त नाद;
पाहिमाम्-पाहिमाम्-त्राहिमाम्-त्राहिमाम्!
प्रणेता एकमात्र कामनारत :–
एकोहम् सर्वेषाम्।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)