१६ मई को प्रयागराज की अनेक साहित्यिक संस्थाओँ की ओर से हिन्दी और मराठी कथा-जगत् की महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर ‘पद्मश्री’ मालती जोशी के गत दिवस हुए निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हेँ श्रद्धांजलि दी गयी है। उल्लेखनीय है कि ५० से भी अधिक हिन्दी और मराठी कथा-संग्रहोँ की लेखिका मालती जोशी शिवानी के बाद हिन्दी की लोकप्रिय कथाकारोँ मे शामिल हैँ।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रधानमन्त्री कुन्तक मिश्र ने कहा, ”मालती जोशी ने अपने लेखन मे पारिवारिक जीवन को प्रमुखता से अपनाया। उनके लेखन मे मात्र नारी-विलाप नहीँ, वरन् उसमेँ भारतीय संस्कृति और परम्परा के दर्शन होते हैँ। अपने कथा-कथन की विशिष्ट शैली के लिए भी उनकी अलग पहचान रही है।”
‘सर्जनपीठ’ की ओर से भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, “९० वर्षीया मालती जोशी गहन अनुभूति और संवेदना-सम्पन्न थीँ। ‘कसैला सच’, ‘रेत का महल’ ‘ये तो होना ही था’ इत्यादिक उनकी कथात्मक कृतियोँ ने उन्हेँ कथाजगत् मे जीवन्त बनाये रखा है। वे पाठकोँ की मनोवृत्ति को अच्छी तरह से समझती थीँ, तभी उन्होँने इलाहाबाद मे आयोजित एक समारोह मे कहा था, ”घोर साहित्यिक कृतियाँ पुस्तकालय की आलमारियोँ मे क़ैद होकर रह जाती हैँ, जबकि लोकप्रिय रचनाओँ को लोग हाथोहाथ लेते हैँ। इतिहास मे दर्ज़ होने से ज़्यादा अच्छा है, पाठकोँ के मन मे घर करना।”
उल्लेखनीय है कि मालती जोशी के रचनात्मक योगदान के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया था।