प्रयागराज में भीषण जलप्लावन से जनजीवन सहमा!

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

प्रयागराज में ‘गंगा और यमुनातट’ के आस-पास (कछार) निर्मित सभी घरों में वर्षा के अतिरिक्त जल (आवृष्ट) के कारण जलप्लावन से शोचनीय स्थिति बन चुकी है। लोग घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, जिस कारण उनकी गतिविधियाँ थम-सी गयी हैं; भोजन, जल, विद्युत् आदिक मूलभूत आवश्यकताओं से भी लोग कट चुके हैं। छतनाग, नैनी, दारागंज, बघाड़ा, फाफामऊ, रसूलाबाद, हरहर मलाक आदिक क्षेत्रों का अधिकांश जलमग्न हो चुका है। ऐसा इसलिए कि गंगा का जलस्तर संकट के निशान से आगे बढ़ चुका है। ख़तरे का निशान ८४.७३ सेण्टी मीटर (यहाँ ‘मीटर’ का प्रयोग अशुद्ध है।) निर्धारित है, जबकि वर्तमान में उसका जलस्तर ८५.६३ सेण्टीमीटर तक पहुँच चुका है।

नावों के माध्यम से जनजीवन को ढोने की कोशिश की जा रही है; परन्तु कई मुहल्लों में सँकरी गलियाँ होने के कारण एक बार में एक ही नाव से जाना-आना (‘आना-जाना’ अनुपयुक्त शब्द है।) हो पा रहा है। पानी से घिरे लोग शासन-प्रशासन की ओर आशाभरी दृष्टि किये हुए हैं; किन्तु उन्हें अभी तक निराशा ही मिली है; क्योंकि शासन-प्रशासन सहायता और सहयोग करने के नाम पर मौन बना हुआ है!

घरों में बड़े-बूढ़े-बच्चे-महिलाएँ सहमी हुई हैं। शासन-प्रशासन कुम्भकर्णी नींद से कब जागेगा, प्रतीक्षा और चिन्ता का विषय बना हुआ है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ११ अगस्त, २०२१ ईसवी।)