विदेशी भाषा का किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र की राज-काज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता

भाषा यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है। यह विचारों की संवाहिका और संप्रेषण का सशक्त माध्यम है। हमें अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने तथा दूसरों की बात समझने के लिए एक ‘संपर्क भाषा’ की जरूरत होती है।

प्राचीन काल में बेबल की एक कथा के अनुसार मानव ने जब शिनार देश में एक अद्भुत नगर और विलक्षण मीनार बनाकर यहोवा से टक्कर लेने की ठानी तो यहोवा ने मानव की भाषाओं में भेद उत्पन्न कर दिया जो कि उनमें परस्पर द्वेष एवं बैर का कारण बना।

आधुनिक काल मे भारत के संबंध में 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध स्वतः स्फूर्त विद्रोह को भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम माना जाता है। किंतु इस आंदोलन का अंग्रेजों ने बलपूर्वक दमन कर दिया था। तब भारत के शीर्ष नेताओं ने यह महसूस किया कि उक्त आंदोलन की असफलता के पीछे किसी एक ‘संपर्क भाषा’ का न होना भी एक बड़ा कारण था ।

सरल शब्दों में कहें तो ‘संपर्क भाषा’ वस्तुत: दो या दो से अधिक भाषा- भाषियों के बीच संपर्क साधने की भाषा होती है । दूसरे शब्दों में दो या अधिक भाषा-भाषियों के मध्य संपर्क स्थापित करने के लिए जिस भाषा का व्यवहार किया जाता है उसे ही ‘संपर्क भाषा’ कहते हैं । किंतु ‘संपर्क भाषा’ का स्पष्ट तौर पर अर्थ सुनिश्चित करना आसान नहीं है। कारण यह है कि लोग इसे ‘राजभाषा’ और ‘राष्ट्रभाषा’ के पर्याय के रूप में प्रयोग करते हैं ।

जापान, कोरिया तथा बुल्गारिया आदि ऐसे देश हैं जहां एक ही भाषा राष्ट्रभाषा, राजभाषा और संपर्क भाषा है और जिसे एक ही शब्द ‘राजभाषा’ से अभिहित किया जाता है । दूसरी ओर रूस जैसे देश हैं जहां कई भाषाएं होते हुए भी एक भाषा स्वीकार कर ली गई है । तीसरी श्रेणी कनाडा, स्विट्जरलैंड आदि देशों की है जहां एक से अधिक राजभाषाएं तथा संपर्क भाषाएं हैं।

भारत की स्थिति इन सबसे भिन्न है । भारत एक बहुभाषा भाषी राष्ट्र है और किसी भी राष्ट्र की ‘राष्ट्रभाषा’ वही हो सकती है जिसे राष्ट्र की अधिकांश जनता बोलती और समझती हो। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने सम्मेलनों में हिंदी को ‘संपर्क भाषा’ तथा ‘राष्ट्रभाषा’ दोनों के रूप में प्रचार-प्रसार किया।

वाल्टर कैनिंग कहते थे कि- “विदेशी भाषा का किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र की राज-काज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता है।”

इसीलिए जब देश आजाद हुआ और देश के संविधान का निर्माण हुआ तब देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को ही राजभाषा घोषित करने के लिए सर्वथा उपयुक्त पाया गया और 14 सितंबर 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के द्वारा हिंदी भाषा को भारतवर्ष की राजभाषा का दर्जा दिया गया। देश के संविधान में अनुच्‍छेद 343 से लेकर 351 तक राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं। सरकार ने गृह मंत्रालय के तहत राजभाषा विभाग का भी गठन किया है।

अब अब प्रश्न यह उठता है कि भारत की ‘संपर्क भाषा’ और ‘राजभाषा’ तो हिंदी है लेकिन भारत की ‘राष्ट्रभाषा’ क्या है?
उत्तर यह कि किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक प्रचलित एवं स्वेच्छा से आत्मसात् की गई भाषा को ‘राष्ट्रभाषा’ कहा जाता है।
वस्तुत ‘राष्ट्रभाषा’ समूचे राष्ट्र के अधिकांश जन सामान्य द्वारा प्रयुक्त होती है । देश के अधिकतर भागों में आम लोग जिस भाषा में आपसी बातचीत विचार विमर्श और लोक व्यवहार करते हैं वही ‘राष्ट्रभाषा’ है ।

कहना न होगा कि इन सभी पैमानों पर हिंदी ही खरी उतरती है। क्योंकि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो केवल भारत की ही नहीं विश्व की एक महत्वपूर्ण भाषा है। यदि बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो हिंदी का विश्व में तीसरा स्थान है।

भारत के बाहर पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, संयुक्‍त अरब अमीरात, युगांडा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरीशस और दक्षिण अफ्रीका सहित कई अन्‍य देशों में भी हिंदी बोली और समझी जाती है।

हिंदी भाषा का शब्दकोश बहुत ही बड़ा है। हिंदी में अपनी किसी भी एक भावना को व्यक्त करने के लिए अनेक शब्द है जो कि अन्य भाषाओं की तुलना में अपने आप में निराली बात है। हिंदी वर्णमाला दुनिया की सर्वाधिक व्यवस्थित वर्णमाला है।

महात्मा गाँधी ने भी कहा था कि, “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। अगर हम भारत को राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हिंदी ही हमारी राष्ट्रभाषा हो सकती है।”
आज भी अघोषित रूप से हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा है । किंतु अन्य भाषा भाषियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए संवैधानिक तौर पर हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया गया है। हिंदी, बांग्ला, उर्दू , पंजाबी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, उड़िया सहित भारत के संविधान द्वारा राष्ट्र की 22 मान्य भाषाएँ हैं।

किंतु इन सभी भाषाओं में हिंदी का स्थान व्यवहारिक रूप से इसलिए सर्वोपरि है क्योंकि यह भारतवर्ष की ‘राजभाषा’ और ‘संपर्क भाषा’ है और व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए इसलिए भी दिल के बिल्कुल करीब है क्योंकि हिंदी मेरी मातृभाषा भी है।

(विनय सिंह बैस)
अनुवाद अधिकारी