भारत की पराक्रमी बेटी विनेश!
तुम्हेँ आशा, उमंग, उत्साह, ऊर्जा और ऊष्मा के साथ अपने मूल गन्तव्य ‘लक्ष्य-संधान’ की ओर बढ़ते रहना है। देश के कुछ क्षणजीवी क्षुद्रजीविता का चरित्र जीते आ रहे हैँ। तुम्हेँ उन सबकी पूर्णत: उपेक्षा करते हुए, कर्मपथ पर बने रहना है। तुमने बिजली के खम्भे पर जलते हुए बल्ब को देखा होगा; उनकी रौशनी से पतिंगोँ/फतिंगोँ को इतनी जलन होती है; ईर्ष्या-द्वेष होता है कि वे उनकी प्रकाशमान् प्रतिभा से ही टकराने लगते हैँ, फिर परिणाम क्या होता है? तुम भी जानती हो।
ऐसे दरिद्र-मानसिकतावाले जलनख़ोरोँ से दूरी बनाकर रहना चाहिए; क्योँकि टुच्ची मनोवृत्तिवालोँ के पास आज जितना कुछ है, वह उनके पुरुषार्थ से अर्जित नहीँ है, बल्कि धोखाधड़ी, धूर्त्तता, मक्कारी तथा छल-कपट के बल पर हथियाया हुआ है। उन सबने अपने भीतर विश्वासघात के नाना चरित्र पैदा किये हैँ। ऐसे अहंकारियोँ पर ‘मनसा’ पदप्रहार करते हुए, अपने पराक्रम को सिद्ध करने के प्रति सन्नद्ध हो जाओ। मत भूलो, तुम वही हो, जिसने रात-दिन अथक परिश्रम करते हुए, अपने अदम्य साहस और विजयशालिनी चरित्र को वैश्विक मंच पर अनेकश: प्रस्तुत किया है।
तुमने तो उस ओलिम्पिक-चैम्पियन और चार बार की विश्व-चैम्पियन जापान की युई सोसाकी को आख़िरी १५ सेकण्ड मे धूल चटा दी थी, जिसके सामने विश्व की कोई पहलवान टिक नहीँ पाती थी। हम सब भारतवासी के लिए इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है? तुमने राष्ट्रमण्डल-खेलोँ मे दो बार स्वर्णपदक जीते हैँ; एशिया की जानी-मानी सभी पहलवानोँ को पटककर ‘एशियन चैम्पियन’ होने का गौरव अर्जित किया है। तुम आठ एशियाई पदक जीत चुकी हो– इस उपलब्धि पर हर भारतवासी को गर्व है।
ओलिम्पिक-खेल का निर्धारित अनुशासन है, जिसके अन्तर्गत तुम्हारी पात्रता निरस्त की गयी थी। तुम्हेँ तो उस नियम का समादर करते हुए, आगे के लिए ‘कमर’ कस लेनी चाहिए। कैसे हुआ, इसे एक दुस्स्वप्न जान-मानकर धीरे-धीरे भूलने का स्वभाव बनाना होगा।
तुम्हारे पराक्रम के सम्मुख आज विश्व नतमस्तक है, जो जाने कितने स्वर्णपदक से बढ़कर है।
बृजभूषण की चहेती, अन्तिम पंघाल को, जिसने तुम्हारे ‘प्रदर्शन’ और ‘क्वालिफ़िकेशन’ को लेकर व्यर्थ की बातेँ की थीँ, तुर्की की जेनेप येतगिल ने प्रथम चक्र मे ही १०-० से बुरी तरह से परास्त कर धूल चटा दी थी। वह भी तुम्हारी प्रकारान्तर से एक विजय रही है।
तुम्हारी हर तरह से विजय हुई है। कुश्ती छोड़ना मत और सकारात्मक प्रतिशोध के साथ अपने सारे विरोधियोँ को, चाहेँ वे कितने ही बड़े पद पर कुण्डली मारकर बैठे होँ, अपने प्रदर्शन से मुँहतोड़ जवाब देती रहना; देश की भावना-संवेदना तुम्हारे साथ है।
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