महान् कोशकार और हिन्दी-अनुरागी फ़ादर कामिल बुल्के की निधन-तिथि (१८ अगस्त) पर विशेष
‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज के तत्त्वावधान मे संस्कृत, हिन्दी एवं अँगरेज़ी-भाषा के विद्वान् फादर कामिल बुल्के की निधन-दिनांक की पूर्व-संध्या मे ‘फ़ादर कामिल बुल्के एवं उनका हिन्दी-अनुराग’ विषय पर १७ अगस्त को एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया था, जिसमे देश के कई बुद्धिजीवियोँ की वैचारिक सहभागिता रही।
रायबरेली से साहित्यकार डॉ० किरन शुक्ल ने कहा, ”उन्होंने सभी मंचों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की आवाज़ बलन्द की थी। वे ईसाई-पुरोहित अवश्य थे; लेकिन उनका समूचा जीवन हिन्दीभाषा के लिए समर्पित रहा।”
मुंगेर विश्वविद्यालय, बिहार से संस्कृत-विभाग मे सहायक आचार्य डॉ० कृपाशंकर पाण्डेय ने बताया, ” वे पाश्चात्य विचारों को बिना छोड़े भारतीय संस्कृति और समाज के मूल्यपरक विचारों को भी अनुभूति के स्तर तक ले जाने का प्रयत्न करते रहे। उनके चरित्र का रूप उन्हेँ अन्य विद्वानो से पृथक् करता है।”
चौधरी महादेवप्रसाद महाविद्यालय, प्रयागराज मे हिन्दी की सहायक अध्यापक डॉ० सरोज सिंह ने कहा, “वे तुलसीदास की भक्ति, साधना, लोकमंगल तथा समन्वयवादी दृष्टिकोण से प्रभावित थे, इसीलिए उन्होँने ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी-माध्यम मे शोधकार्य किया था, जिसे भारतविद्या (इंडोलॉजी) की प्रमुख रचना माना गया।”
आयोजक, भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, ”इलाहाबाद के तत्कालीन कुलपति पं० अमरनाथ झा ने शोध-सम्बन्धित नियमावली मे वांछित संशोधन कराते हुए, कामिल बुल्के को हिन्दी-माध्यम मे शोध करने की अनुमति दे दी थी, परिणामस्वरूप देश के समस्त विश्वविद्यालयों में ‘हिन्दी-माध्यम’ में शोध करने की अनुमति मिल गयी थी। फ़ादर बुल्के ने ‘राम’ पर शोध करते समय रामायण के तीन सौ रूपों की खोज की थी। इस प्रकार हिन्दीशोध के इतिहास में पहली बार ‘राम’ पर विधिवत् शोधकर्म करने का श्रेय फ़ादर कामिल बुल्के को जाता है।”
आर्यकन्या डिग्री कॉलेज, प्रयागराज मे हिन्दी की सहायक प्राध्यापक डॉ० मुदिता तिवारी ने कहा, “बेल्जियम के रेम्सचैपल मे जन्मे और भारत को अपनी कर्मभूमि बनानेवाले संन्यासी फादर कामिल बुल्के ने रामकथा के अन्तरराष्ट्रीय प्रभाव और बेहतर मनुष्य बनने मे इसकी भूमिका को स्वीकार किया। उन्होँने राँची के सेण्ट जेवियर्स कॉलेज मे संस्कृत और हिन्दीविभाग के अध्यक्ष रहते हुए अँगरेजी-हिन्दी कोश के शब्द-संकलन और सम्पादन मे भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया था।”
सेवाभारती, दिल्ली मे शिक्षक रसराज डॉ० अवनेन्द्र पाण्डेय ने कहा, “डाॅ० फादर कामिल बुल्के ने इलाहाबाद मे अपने प्रवास काल को ‘दूसरा वसंत’ कहा है । वे तत्कालीन हिन्दीभाषा के विद्वानों से परिचित थे , जिनमे धर्मवीर भारती , जगदीश गुप्ता, रामस्वरूप चतुर्वेदी, रघुवंश, महादेवी वर्मा तथा अन्य लोग थे ।बुल्के डाॅ० धीरेन्द्र वर्मा को अपना प्रेरणास्रोत और महादेवी वर्मा को बड़ी बहन मानते थे।”
हिन्दी-संग्रहालय, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयागराज के संग्रहालय-प्रभारी दुर्गानन्द शर्मा ने बताया, “उन्होँने तुलसी के संदर्भ मे न केवल हिन्दी मे लिखा, वरन् अंग्रेजी, फ्लेमिश और फ्रेंच भाषा मे भी लिखा। श्री रामचरितमानस की जिन चौपाइयों ने डॉ० बुल्के को हिन्दी पढ़ने की प्रेरणा दी उन्हीँ चौपाइयों के रचयिता तुलसीदास का अनुसरण और गुणगान वे आजीवन करते रहे।”
विद्यार्थी इण्टर कॉलेज, कुशीनगर मे हिन्दी की सहायक अध्यापक वृन्दा पाण्डेय ने कहा, फादर कामिल बुल्के का रामकथा-विषयक शोधकर्म का कोई तुलना नहीँ है; क्योँकि रामकथा पर जितने भी शोध हुए हैं, उनमे कामिल बुल्के का शोधकर्म ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ शीर्ष पर दिखता है।”