भारतीय वायु सेना को समर्पित विनय शुक्ल जी की रचना

भारतीय वायु सेना के स्थापना दिवस के अवसर पर भारतीय वायु सेना को समर्पित विनय शुक्ल जी की बेहतरीन रचना :


नीली वर्दी, नीला अंबर
प्रबल, प्रचण्ड हे गरूड़ दिगम्बर
क्षितिज नभ का हो या
हिम की चौड़ी छाती,
जब-जब जननी पर
आफ़त आई है
जब भी जननी ने
तुझे पुकारा है,
चौड़ी छाती,ऊँचा मस्तक ले
हर जन को उबारा है ।
दुश्मन भी थर-थर काँपा है
सीमा जब भी उसने डाँका है,
आज छद्म समर की बेला है
खल ने भी क्या चल चली है
अपने अपनों को ही काटे
ऐसा ज़हर उसने घोला है ।
कहीं जात-पाँत,कहीं धर्मयुध,
कहीं अर्थ युद्ध ,कहीं अंध युद्ध,
हर तरफ़ समर कोलाहल है
नभ-सरिता में घुला हलाहल है।
आओ अब तुम पर फैलाओ
काटो विष बेलों को
नभ से आते हर क़िलों को
हर खल के विष बेलों को,
अब शस्त्र उठाओ
अपने पैने पंजों में
नभ-अम्बर पर छाकर
भेदो खल का सीना।
तोड़ों भ्रम के जालों को,
खल के नीच इरादों को ।
नभ-गगन पर छा जाओ
काटो तिमिर समर खल को,
अपने फ़ौलादी पर फैलाओ
नील गगन को दिप्तमान कर
परचम अम्बर पर लहराओ ।