सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’ (पत्रकार हिन्दुस्तान)-
यू०पी० में मचा है हाहाकार
चच्चा और भतीजे रूठे,
भाई-बाप खिसियायि रहे |
हमका दई देव जो भी मांगी,
यहु भौकाल दिखाइ रहे |
कुर्सी के पीछे मची तबाही,
घर-भीतर तकरार |
यू०पी०………………………….
चमचा सब आजाद भए,
वै आगी खूब लगाइ रहे |
कटौ-मरौ मोरे सींगें ते,
अपनौती खूब देखाइ रहे |
लगा जुझाई ऐसी हुई गइ,
टूट रहा परिवार |
यू०पी०………………………….
सत्ता-शासन का अनुशासन,
अपने लोग मिटाइ दिहिन |
ऐसो भा तड़बड़ आपस मा,
थू – थू खूब कराइ लिहिन |
‘परदेशी’ चारों खाने चित,
पहले फजीहत फिर से प्यार |
यू०पी०…………….