अभिव्यक्ति के स्वर : जीवन को संगीत बना जाओ तो बेहतर है

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


एक:
उजड़ा हुआ चमन, उजड़ा रहे तो बेहतर है,
खिलता हुआ गगन, खिला रहे तो बेहतर है।
गुमनाम लोग की दुनिया भी क्या दुनिया,
अब वे खुले आम हो जायें तो बेहतर है।
इस सीने में अनगिनत राज़ दफ़्न हैं कबसे,
वे अब राज़फ़ाश हो जायें तो बेहतर है।
आँसुओं को सागर बनाने से हासिल भी क्या?
सागर-सा ख़ुद को अगर बनायें तो बेहतर है।
जो तुम भूल गये वही गीत होठों पे मचल रहे,
जीवन को संगीत बना जाओ तो बेहतर है।


दो:
उनकी आँखों में शरारत यों ही नहीं,
उनके होठों पे गुज़ारिश यों ही नहीं।
आज़ाद परिन्दा हूँ, हवा से बातें करता,
तूफ़ां से दो-दो हाथ होता यों ही नहीं।


तीन:
मैंने ख़ुद को तो पहचाना ही नहीं,
मैंने ख़ुद-से-ख़ुद को जाना ही नहीं।
यहाँ नक़्शे-सानी१ जो तेरा दिखता है,
उस फ़नकार को तो तूने माना ही नहीं।
दोष तेरा है इसमें, कैसे कह दूँ खुलकर,
अभी तेरी फ़ित्रत को तो जाना ही नहीं।
शब्दार्थ :– १-दूसरे प्रयास में ही बनाया गया आकर्षक चित्र


चार:
वक़्त फिसलता है तो फिसल जाने दे,
हौसला बुलन्द रखो तो कोई बात बने।


पाँच:
मेरी सूरत से तेरी सूरत बेहतर नज़र आती है,
तेरी सीरत से मेरी सीरत बेहतर नज़र आती है।


(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १३ मार्च, २०१८ ई०)