वक़्त ने चाल चल दी है

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


बेपर्द: की बात करने लगे,
बातों को वे कतरने लगे।
ख़ुद को तूफ़ाँ समझते थे,
बुलबुला से भी डरने लगे।
वक़्त ने चाल चल दी है,
हर गोटी को परखने लगे।
देखते तस्वीर मैख़ाने का,
उनके क़दम बहकने लगे।
क़तर कर पर परिन्दों का,
वे जीभर अब चहकने लगे।
देखकर उनकी हैवानियत,
फूल भी अब दहकने लगे।
मौसम का मिज़ाज है बदला,
अब ख़ुद ही हैं सँभलने लगे।