चिन्तन की एक कड़ी

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


वाह रे मनुष्य !
‘मोदी-मोदी’ अथवा ‘योगी-योगी’ अथवा इस तरह की कोई भी गतिविधि मात्र पानी का एक बुलबुला है। जल की सतह पर कुछ ही पल के लिए ‘बुलबुला’ दिखता है तब आँखें उस ओर स्थिर हो जाती हैं; फूट जाता है तब आँखें हट जाती हैं। यही ‘माया’ भी है— मा = नहीं (निषेध); या = जो; अर्थात् जो नहीं है; जिसका अस्तित्व है ही नहीं, उसके पीछे मनुष्य भाग रहा है।

कल कोई ‘भोगी’ आयेगा; परसो कोई ‘रोगी’ आयेगा तथा उसके अगले दिन कोई ‘ढोंगी’ आयेगा। इस संसार का कार्य-व्यापार ऐसे ही चलता आ रहा है, समय-चक्र से साक्षात् कीजिए, सत्य का अनावरण कर देगा, क्योंकि समय-प्रवाह के साथ असत् और सत् का संयोग रहा है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १८ अप्रैल, २०१८ ई०)