धनुषभंग के साथ सम्पन्न हुआ श्रीराम और माता जानकी का विवाह

ग्राम नेवलिया विकास खण्ड सुरसा में शिव कृपा सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित हो रही 7 दिवसीय रामकथा के चौथे दिवस कथाव्यास राधे गोविंदाचार्य महाराज ने वाटिका प्रसंग सुनाते हुए बताया कि ऋषि विश्वामित्र अपने शिष्य श्रीराम और लक्ष्मण के साथ जब मिथिला पहुंचते हैं तो जनकवाटिका में रुकते हैं। वहां पर सुबह-सुबह श्रीराम और लक्ष्मण गुरु के पूजन के लिए फूल लेने के लिए पुष्प वाटिका में जाते हैं। वहां सीता जी भी अपनी सखियों के साथ मां सुनयना के आदेश से पार्वती मंदिर में पूजा के लिए आती हैं। उनकी ध्वनि श्री राम के कानों में गूंजती है। इस पर श्रीराम को पहले से ही आभास हो जाता है और वो लक्ष्मण से कहते हैं कि कामदेव नगाड़े बजाते हुए आ रहे हैं, मुझे बचाओ। इतना कहते ही श्रीराम और सीता के नेत्र मिलते हैं। दोनों एक-दूसरे को अपलक देखते हैं और लक्ष्मण उन्हें दूर ले जाते हैं। इसके बाद सीता माता पार्वती के मंदिर में आकर माता पार्वती से श्रीराम को पति के रूप में प्राप्त करने की विनती करती हैं।

वहीं सरल स्वभाव के श्रीराम पुष्प लेकर गुरु के पास गए और उन्होने अपने गुरू को सारी बात बता दी। इस पर विश्वामित्र कहते हैं कि तुमने मुझे फूल दिए, अब तुम्हें फल प्राप्त होगा। श्रीराम और सीता का विवाह से पूर्व का यह प्रेम अत्यंत पवित्र है। ये भाव और मन के तल पर प्रेम और स्नेह की पराकाष्ठा है। सीता और राम दोनों ही मानसिक रूप से इसे स्वीकार करते हैं। यह सात्विक दृश्य कितना प्रेरक है। वासना प्रेम नहीं है। स्वतंत्रता के नाम पर मर्यादा तोड़ना उचित नहीं है। राम ने काम को स्वीकार कर प्रेम और वासना का अंतर बताया है। यह प्रसंग उन्हें मानव के स्तर से बहुत ऊंचा उठाता है।

राजा जनक द्वारा अपनी पुत्री सीता के विवाह के स्वयंवर में शिवधनुष को तोड़ने की शर्त रखी जिसमें सारे राजा महाराजा भाग्य आजमाने आये। लंकेश रावण और बाणासुर जैसे महायोद्धाओं में तो जबरदस्त वाकयुद्ध हुआ। मगर कोई शिव धनुष को तोड़ना तो दूर, उसको हिला भी न सका। इस पर राजा जनक मार्मिक विलाप करने लगे। स्वयंवर में अपने गुरु मुनि विश्वामित्र के साथ आये अयोध्या के राजकुमार राम व लक्ष्मण यह सब देख रहे थे। मुनि से जब रहा नहीं गया तो उन्होंने राम को धनुष भंग का आदेश दिया। आदेश सुन भगवान राम ने प्रत्यंचा चढ़ाकर भगवान शिव के धनुष को पलक झपकते खंड-खंड कर दिया। अयोध्यानाथ की जय से स्वयंवर स्थल गूंज ही रहा था, कि अपने गुरु शिव के धनुष के टूटने का अहसास पा ऋषि परशुराम ने क्रोधित होते स्वयंवर स्थल पहुंच कर रंग में भंग कर दिया। उलटे उनके पूछने पर किसने तोड़ा धनुष, लक्ष्मण ने व्यंग बाण किया। “नाथ सम्भु धनु भंजनि हारा, होइहि कोउ एक दास तुम्हारा।” से मामला बिगड़ गया। इसके बाद शुरू हुआ लक्ष्मण और परशुराम के बीच जबरदस्त संवाद। संवाद बड़ी मुश्किल से थम पाया और गुरु ऋषि के आशीर्वाद को प्राप्त कर जनक जननी सीता ने राम को वरमाला डाली। श्रोतागण माता जानकी और जय श्री राम के जयकारे लगा रहे थे। इस मौके पर ग्राम वासियों ने कथा का रसपान किया।