श्री रामचरितमानस जाति, वर्ग, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर मानवता का पोषण करता है– डॉ० नीलम जैन

‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज के तत्त्वावधान मे ‘सारस्वत सदन’, प्रयागराज मे १० अगस्त को ‘श्री रामचरितमानस की सार्वकालिक प्रासंगिकता’ विषय पर एक अन्तरराष्ट्रीय आन्तर्जालिक बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया, जिसमे देश-विदेश के चिन्तकोँ-विचारकोँ की सहभागिता रही।

पुणे से विदुषी डॉ० नीलम जैन ने कहा, ”इस ग्रन्थ मे विविध पात्रोँ के माध्यम से जाति, वर्ग, समुदाय, सम्प्रदाय एवं सभी मानवोचित दुर्बलताओँ से ऊपर उठकर भारत को एक सर्वांगीण विकसित राष्ट्र बनाने के सूत्र दिये गये हैँ। यह लोककृति बताती है कि कैसे राष्ट्र का उन्मेष हो; गुरु-शिष्य आचारवान् विचारवान होँ , पारिवारिक सम्बन्ध तनाव और बिखराव रहित हो एवं वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव हो।”

एसोसिएट प्रोफेसर (हिन्दी) क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, चीन के डॉ० विवेकमणि त्रिपाठी ने कहा, “सनातन भारतीय समाज मे श्री रामचरितमानस की चौपाइयाँ वैदिक ऋचाओँ के समान प्रतिष्ठित हैँ I जनभाषा मे रचित यह महाकाव्य सामान्य जन के लिए ब्रह्मवाक्य के समान अनुकरणीय है I सुराष्ट्र चिन्तन तथा विविध वादोँ के मध्य समन्वय की स्थापना इस महाकाव्य का जीवनदायक तत्त्व है I विखण्डित होती हुई सामाजिक मान्यताओँ एवं सनातन सांस्कृतिक आदर्शोँ की पुनर्स्थापना ही श्रीरामचरितमानस का महनीय उद्देश्य है I”

 आयोजक एवं भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया, "गोस्वामी तुलसीदास अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष इत्यादिक चतुर्वर्ग फलोँ के संकेत का वर्णन तो करते हैँ; किन्तु मानस का प्रधान फल धर्म (कर्त्तव्य) की प्राप्ति है। तुलसी मुक्ति की अपेक्षा रामभक्ति पर अधिक बल देते हैँ। कैवल्य-रूप अत्यन्त दुर्लभ परमपद रामभक्ति के द्वारा बिना इच्छा किये ही प्राप्त हो जाता है।"

अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी संघटन, नीदरलैण्ड्स की अध्यक्ष डॉ० ऋतु शर्मा नमन पाँडे ने बताया, ”श्री रामचरितमानस’ मे आध्यात्मिक मूल्योँ, नैतिक शिक्षा सामाजिक समरसता तथा सांस्कृतिक महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि सत्य, धर्म, करुणा, न्याय एवं दया । ये मूल्य आज भी हमारे जीवन मे प्रासंगिक हैँ।”

हिन्दी-विभागाध्यक्ष– शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गढ़ाकोटा सागर (म० प्र०) डॉ० घनश्याम भारती ने कहा, ”श्री रामचरितमानस परिवार, समाज तथा संस्था मे रहनेवाले लगभग सभी मनुष्योँ को जीवन जीने की कला सिखाता है। श्री रामचरितमानस हमे यही सन्देश देता है कि जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।। विविध क्षेत्रोँ मे श्रीरामचरितमानस हमे शिक्षा एवं ज्ञान का संदेश देता है।”

‘देशना’ पत्रिका, पुणे की सम्पादिका डॉ० ममता जैन ने बताया, ”श्री रामचरितमानस एक ऐसा दिव्य भास्कर है, जो पथ- भ्रष्ट दिग्भ्रमितजन को ऊर्जा और प्रेरणा प्रदान करता है तथा परिवार समाज एवं राष्ट्र को उच्च आदर्श का सुदृढ़ मार्ग प्रशस्त करता है । कहीँ राम के रूप मे आदर्श बालक के रूप को स्थापित किया तो कहीं आदर्श शिष्य को। सीता के माध्यम से स्त्री-शिक्षा का भी आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है।”