अन्धेरा भीतर भरा, बाहर दीप-प्रकाश

November 7, 2022 0

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–इधर लाश-अम्बार है, उधर चुनावी बोल।लज्जा हँस-हँस घूमकर, पीट रही है ढोल।।दो–लोग बने लतख़ोर हैं, आँख हुई हैं बन्द।नेता हैं सब जानते, रचते तब फरफन्द।।तीन–अन्धेरा भीतर भरा, बाहर दीप-प्रकाश।भूख देह […]