‘महामना’ मदन मोहन मालवीय की पुण्यतिथि पर नमन्

मूलरूप से मालवा निवासी पं० ब्रजनाथ प्रयागराज में आकर बस गये थे, इसी कारण इनका परिवार मालवीय कहा गया। यही आगे चलकर इस परिवार का जातिनाम बन गया। ‘महामना’ मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 ईसवी को प्रयागराज में हुआ था। सात भाई-बहनों में वह पाँचवीं संतान थे।

उच्चशिक्षित मालवीय जी अध्यापक, अधिवक्ता और प्रखर लेखक-पत्रकार के साथ ही उच्चकोटि के धर्मज्ञ भी थे। महामनाजी ने 1885 ईसवी से 1907 ईसवी के मध्य तीन पत्रों हिन्दुस्तान, लीडर, इंडियन यूनियन और अभ्युदय का सम्पादन किया। 1902 ईसवी में मालवीय जी यूपी ‘इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ के सदस्य और बाद में ‘सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली’ के सदस्य भी चुने गये। 1909 ईसवी (लाहौर), 1918 ईसवी (दिल्ली), 1930 ईसवी (दिल्ली) और 1932 ईसवी (कोलकाता) में कॉङ्ग्रेस अध्यक्ष रहे। धीर-गम्भीर चिन्तक मालवीयजी अग्रिम पङ्क्ति के स्वाधीनतासंग्राम सेनानी थे। मालवीयजी ने उत्तरप्रदेश की अदालतों और कार्यालयों में हिन्दी को व्यवहार योग्य भाषा के रूप में स्वीकृति दिलायी। नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में मदनमोहन मालवीय ने भाग लिया और जेल गये। 1937 ईसवी में राजनीति से सन्न्यास ले लिया। 12 नवम्बर, 1946 ईसवी को पार्थिवशरीर त्यागकर गोलोक चले गये।

‘महामना’ मदनमोहन मालवीयजी के विचार सदैव प्रासंगिक हैं। वह कहते थे–

हिन्दुस्तान जैसे हिन्दुओं का प्यारा जन्मस्थान है, वैसा ही मुसलमानों का भी है। ये दोनों जातियाँ अब यहाँ बसती हैं और सदा बसी रहेंगी। जितना इन दोनों में परस्पर मेल और एकता बढ़ेगी, उतनी ही देश की उन्नति करने में हमारी शक्ति बढ़ेगी।
―’महामना’ मदन मोहन मालवीय

जो हमारी उन्नति नहीं चाहते, वे हमको एक–दूसरे से लड़ाने के लिए यत्न करते हैं और करेंगे। लेकिन हमारे आपस में एक–दूसरे के विचार और भाव शुद्ध रहें तो हमारे किसी बैरी का हमको लड़ाने का यत्न सफल नहीं होगा।
―’महामना’ मदन मोहन मालवीय

हिन्दू बलवान होकर मुसलमानों को तकलीफ दें, ऐसी मेरी स्वप्न में भी कल्पना नहीं है। मेरे मन में ऐसा विचार आया कि मैं धर्मच्युत हुआ। मेरी सदा यही इच्छा है कि हिन्दू और मुसलमान शक्तिमान हों और जगत के अन्य समाजों के सात खड़े होने लायक बनें।
―’महामना’ मदन मोहन मालवीय

सुधांशु बाजपेयी (प्रवक्ता यूपी कॉङ्ग्रेस)