एक यशस्वी पत्रकार के रूप मे महामना मदनमोहन मालवीय जी

आज (२५ दिसम्बर) महामना की जन्मतिथि/का जन्मदिनांक है।

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

इलाहाबाद अध्यात्म, शिक्षा, भाषा, व्याकरण, साहित्य, पत्रकारिता, विधि, राजनीति आदिक क्षेत्रों मे देश का सर्वविख्यात सारस्वत केन्द्र रहा है। इस स्थान को शताधिक शब्दधर्मियों ने अपना जन्म और कर्मस्थान बनाकर कुशल कृतिकार के रूप मे अपनी यशस्विता अर्जित की है। इसी शृंखला में एक महत्त्वपूर्ण नाम है, पं० मदनमोहन मालवीय। यद्यपि वे अनेक क्षेत्रों मे शिखरस्थ (शीर्ष पर स्थित) रहे तथापि हम आज उनकी पत्रकारीय भूमिका को यहाँ समझेंगे।

वास्तव मे, मदनमोहन मालवीय के मन-मस्तिष्क मे पत्रकारिता के बीज-वपन करने का श्रेय बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द को जाता है, जिन्होंने मात्र १४ वर्ष की अवस्था (यहाँ ‘आयु’ का प्रयोग अशुद्ध है और अनपयुक्त भी।) से ही काव्यरचना करनेवाले किशोर कवि मदनमोहन की कविता को अपनी पत्रिका मे प्रकाशित की थी। यहीं से वे एक पत्रकार बनने की लालसा जीने लगे थे, तब मदनमोहन की रचनाएँ ‘मकरन्द’ उपनाम से प्रकाशित होती थीं। उनके समसामयिक लेखादिक पं० बालकृष्ण भट्ट की पत्रिका ‘हिन्दी प्रदीप’ मे प्रकाशित होने लगे थे। वयवार्द्धक्य (अवस्था मे बढ़ोतरी– ‘बढ़ोत्तरी’ अशुद्ध है।) के साथ मदनमोहन की शिक्षा उन्नत होती रही। वे म्योर सेण्ट्रल कॉलेज, इलाहाबाद में पढ़ने लगे थे, तब उन्हें संस्कृताचार्य पं० आदित्यराम भट्टाचार्य का सान्निध्य (‘सानिध्य’ अशुद्ध है) प्राप्त हुआ था। पण्डित भट्टाचार्य ने १८८५ ई० से एक अँगरेज़ी-साप्ताहिक समाचारपत्र ‘इण्डियन युनियन’ प्रकाशित किया था। वे मदनमोहन की हिन्दी-अँगरेज़ी भाषिक सामर्थ्य से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने पत्र-सम्पादन का कुछ दायित्व मदनमोहन को भी सौंप दिया था। आगे चलकर, पं० मदनमोहन मालवीय एक कुशल प्रवक्ता सिद्ध हुए थे, जिससे प्रभावित होकर कालाकाँकर के राजा रामपाल सिंह ने उनसे दैनिक हिन्दी-समाचारपत्र ‘हिन्दोस्थान’ का सम्पादन करने के लिए आग्रह किया था। राजा रामपाल मद्यपी (शराबी) थे, जो मालवीय जी को पसन्द नहीं था; वहीं मालवीय जी स्वाभिमानी थे, इसलिए उन्होंने दो बन्धनों (शर्तों) को सामने रखते हुए कहा था :– प्रथम, राजा रामपाल सिंह उन्हें अपने कक्ष में तब आने के लिए नहीं कहलवायेंगे जब वे नशे की स्थिति में रहेंगे और द्वितीय, उनके सम्पादन में वे हस्तक्षेप नहीं करेंगे। राजा रामपाल सिंह ने दोनों अनुशासन को स्वीकार कर लिया था, फलत: जुलाई, १८८६ ई० से मालवीय जी उस समाचारपत्र मे प्रधान सम्पादक के रूप मे दायित्व-निर्वहण करने लगे थे। इस प्रकार ढाई वर्षों तक मालवीय जी की प्रखर और मुखर पत्रकारीय यात्रा चलती रही। पूर्व-निर्धारित बन्धन ढीला होते ही मालवीय जी ‘हिन्दोस्थान’ से स्वयं को पृथक् करते हुए, इलाहाबाद से प्रकाशित हो रहे अँगरेज़ी-दैनिक ‘इण्डियन ओपीनियन’ के सहसम्पादक के पद पर १८८९ ई० से कार्य करने लगे थे। आगे चलकर, ‘इण्डियन ओपीनियन’ का विलय लखनऊ से प्रकाशित एक अन्य समाचारपत्र ‘एडवोकेट’ में हो गया था और मालवीय जी ‘एडवोकेट’ से सम्बद्ध रहे।

वे इलाहाबाद लौटे और यहीं से उन्होंने ऐतिहासिक साप्ताहिक समाचारपत्र ‘अभ्म्युदय’ का प्रकाशन आरम्भ किया था। क्रान्तिकारिता की दृष्टि से ‘अभ्युदय’ की महत्ता देखते ही बनती थी। ‘अभ्युदय’ को गति देने के लिए उन्होंने इलाहाबाद से ही २४ अक्तूबर, १९०९ ई० को एक अँगरेज़ी-समाचारपत्र ‘लीडर’ का प्रकाशन किया था। मालवीय जी की पत्रकारीय भूख शान्त नहीं हुई थी, तभी तो उन्होंने नवम्बर, १९१० ई० मे इलाहाबाद से मासिक पत्रिका ‘मर्यादा’ प्रकाशित की थी, जिसके सम्पादन का दायित्व उन्होंने लक्ष्मीधर वाजपेयी को सौंपा था। ‘मर्यादा’ के बन्द हो जाने के बाद उन्होंने ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ को दिल्ली से क्रय कर, उसे प्रकाशित कराया था, जिसमे महात्मा गांधी, प्रो० के०एम० पणिक्कर, जयराम दास दौलत राम आदिक की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। आगे चलकर, उसे घनश्याम दास बिड़ला को सौंप दिया गया था। उन्होंंने मालवीय जी को आजीवन ‘हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड’ का निदेशक-पद का सम्मान दिया था। मालवीय जी की यह यात्रा यहीं नहीं थमी थी; उन्होंने ‘सनातन धर्म’, ‘हिन्दुस्तान रीव्यू’, ‘महारथी’, ‘मॉर्डर्न रीव्यू’, ‘स्वराज’ आदिक के प्रकाशन मे अपना महत् योगदान किया था। (‘योगदान दिया था’ अशुद्ध है।)

ऐसे यशस्वी पत्रकारीय व्यक्तित्व को हम नमन (‘नमन्’ अशुद्ध है।) करते हैं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २५ दिसम्बर, २०२२ ईसवी।)