हिन्दी-भाषा की शुद्धता नष्ट करने पर उतारू है, उत्तरप्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग!..?

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आयोग-द्वारा लगातार प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों में प्रश्नात्मक वाक्य बनाने और शुद्ध उत्तर-विकल्प-निर्धारण करने में घोर और भर्त्सना करनेवाली लापरवाही दिख रही है, जिसे हम समाचारपत्रों और अन्य माध्यम से सार्वजनिक करते आ रहे हैं। वे कौन लोग हैं, जो एक ही ढर्रे के प्रश्नपत्र बनाते आ रहे हैं? उनमें विरामचिह्नों वाक्य-विन्यास आदिक की अशुद्धियाँ साफ़ तौर पर देखी जा सकती हैं।

पिछले २४ अगस्त को ‘उत्तरप्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग’-द्वारा ‘प्रारम्भिक अर्हता परीक्षा’ के प्रश्नपत्र में कुल १०० प्रश्न किये गये थे, जिनमें से अधिकतर प्रश्नों और उत्तर-विकल्प में भाषा और तथ्यों की अशुद्धियाँ देखी गयी हैं। किस वाक्य के अन्तर्गत योजकचिह्न (-), अल्प विरामचिह्न (,), ‘अर्द्ध विरामचिह्न (;), उपविरामचिह्न (:), ‘पूर्ण विरामचिह्न’ (।), विवरणचिह्न (:–), एकल और युगल उद्धरणचिह्न (‘…..’ और ”…..”), प्रश्ननात्मक चिह्न (?), निर्देशात्मक चिह्न (–), संक्षेपसूचक चिह्न (०) आदिक के प्रयोग होंगे, आयोग-द्वारा निर्धारित किसी भी प्राश्निक (प्रश्नकर्त्ता) को बिलकुल नहीं मालूम! इतना ही नहीं, ‘साइंटिस्ट’ का हिन्दी-अर्थ कहीं ‘वैज्ञानिक’ दिख रहा है तो कहीं ‘विज्ञानी’। हिन्दी में संक्षेपसूचक चिह्न (०) है, जबकि इसके स्थान पर अँगरेज़ी पूर्ण विरामचिह्न (.) का प्रयोग है।

उपयुक्त शब्द ‘निम्नलिखित’ के स्थान पर ‘निम्न’ लगा है।

ऐसे में, एक सिरे से आयोग के सम्बन्धित अधिकारियों और कथित प्राश्निकों की शैक्षिक योग्यता प्रश्नों के घेरे में आ जाती है। जिस भी किसी व्यक्ति अथवा परामर्शदातामण्डल ने प्रश्नपत्र का नाम ‘प्रश्न पुस्तिका’ सुझाया है, उसकी बौद्धिक सामर्थ्य पर प्रश्नचिह्न लग जाता है; क्योंकि ‘प्रश्न पुस्तिका’ कोई सार्थक शब्द नहीं है। ‘प्रश्न’ अलग दिख रहा है और ‘पुस्तिका’ भी; ऐसे में, इसका कोई अर्थ ही नहीं है। जब ‘प्रश्नपुस्तिका’/’प्रश्न-पुस्तिका’ लिखा जायेगा तब षष्ठी तत्पुरुष समास के अन्तर्गत यह स्थान पायेगा। प्रश्नपुस्तिका का अर्थ ‘प्रश्न की कॉपी’ है; जैसे– अभ्यासपुस्तिका (अभ्यास करने की कॉपी), इसलिए इसे ‘प्रश्नपत्र’ ही कहा जाना सर्वथा उचित है। ”इनमें से कोई नहीं” को प्रथम उत्तर-विकल्प के रूप में दिया गया है, जबकि यह विकल्प अन्तिम विकल्प के रूप में पूर्ण विरामचिह्न के साथ रहेगा।

हमने प्रश्नपत्र ‘बी’ का परीक्षण किया है। इसके पहले प्रश्न में ‘पाँच सेल्समैन’ का प्रयोग किया गया है, जबकि पाँच सेल्समेन’ होगा। प्रश्न १ के विकल्प ‘ए’ का वाक्य पूर्ण है, इसलिए वाक्य के अन्त में पूर्ण विरामचिह्न लगेगा। प्रश्न २ में ‘निम्न’ के स्थान पर ‘निम्नलिखित’ होगा। प्रश्न १५ में ”ग्रांड ओल्ड मैन” का प्रयोग किया गया है, जबकि शुद्ध शब्द ‘ग्रैण्ड’ है; इसमें प्रयुक्त ‘युगल उद्धरणचिह्न’ (“…”) के स्थान पर ‘एकल उद्धरणचिह्न’ (‘..’) का प्रयोग होगा। प्रश्न १६ में ‘सन् 1915-16’ का प्रयोग है, जो कि ग़लत है; सही प्रयोग वर्ष 1915-16 होगा। वैसे भी शुद्ध प्रयोग ‘ईसवी सन् 1915-16’/ ‘1915-16 ईसवी’ है। ‘होम रूल लीग’ को ‘होम रूल लीग्’ लिखा जायेगा। प्रश्न १८ में ‘करो या मरो’ में युगल उद्धरणचिह्न लगेगा; क्योंकि यह महात्मा गांधी का कथन है। प्रश्न २२ में हिन्दी के प्रश्न में ‘खेतड़ी’ परियोजना है और अँगरेज़ी में ‘Khetri’ (खेत्री)। हमारा परीक्षार्थी किसे सही माने? प्रश्न २३ में ‘जब’ के साथ ‘तो’ का व्यवहार किया गया है, जबकि ‘जब’ के साथ ‘तब’ का होता है। इसके अँगरेज़ी के प्रश्नात्मक वाक्य में ‘प्रश्नबोधक चिह्न’ (?) ग़ायब है, जबकि हिन्दी में है। प्रश्न २४ में ‘कौन सी’ के स्थान पर ‘कौन-सी’ और ‘नदी तंत्र’ के स्थान पर ‘नदी-तन्त्र’ होगा। प्रश्न २५ में ‘बैंक-दर’ होगा। प्रश्न ३७ में ‘निर्देशकचिह्न’ की जगह ‘विवरणचिह्न’ लगेगा। प्रश्न ४६ में ‘कौन सा’ के स्थान पर ‘कौन-सा’ होगा। प्रश्न ४७ में ‘हरनेवाला’ होगा। प्रश्न ४८ में मुहावरा पूर्ण वाक्य है और किसी का कथन भी, इसलिए “गागर में सागर भरना।” लिखा जायेगा। प्रश्न ४८ में ‘निर्देशकचिह्न’, प्रश्न ४९-५० में विवरणचिह्न लगेंगे। प्रश्न ५६ में ‘पक्षीविज्ञानी’ की जगह ‘पक्षिविज्ञानी’ होगा। प्रश्न ६० में ‘कीजिए’ के आगे ‘अल्प विरामचिह्न’ लगेगा और ‘मेल नहीं रखता’ की जगह ‘मेल नहीं करता’ होगा। मेल किया जाता है; मिलान किया जाता है। प्रश्न ६५ में ‘दो साल का’ के स्थान पर ‘दो सालों के लिए’ होगा। प्रश्न ७४ में हिन्दी-प्रश्न में पहले माह फिर तारीख़ दी गयी हैं, जबकि हिन्दी में पहले तारीख़ फिर माह लिखा जाता है; जैसे ३ अक्तूबर, १४ सितम्बर; न कि अक्तूबर ३, सितम्बर १४। प्रश्न ७७ में ‘ओणम’ के स्थान पर ‘ओणम्’ होगा। प्रश्न ८१ के निर्देश के अन्तर्गत गद्यांश में ‘विभीषिकाओं’, ‘गाँधीजी’, ‘स्वर्णिम-युग’, ‘मानव जाति’ और प्रश्न ८१ में ‘विश्व शांति’ के स्थान पर क्रमश: ‘विभीषिका’, ‘गांधी जी’, ‘स्वर्णिम युग’, ‘मानव-जाति’ तथा ‘विश्व-शान्ति’ होगा। प्रश्न ८२ में ‘कठोर से कठोर’ के स्थान पर ‘कठोर से कठोरतर’ होगा। सभी उत्तर-विकल्प में ‘द्वारा’ से पूर्व योजकचिह्न लगेंगे। विकल्प ‘डी’ में ‘सत्यपालन’ होगा। प्रश्न ८३ में ‘स्वर्णिम युग’ रहेगा और उत्तर-विकल्प ‘बी’ में ‘आध्यात्म’ की जगह ‘अध्यात्म’ होगा। प्रश्न ८५ के उत्तर-विकल्प ‘ए’ में ‘कठोर से कठोरतर’ होगा। प्रश्न ८६ के निर्देश के अन्तर्गत गद्यांश में ‘बड़ी-बड़ी प्राचीरों’ के स्थान पर ‘बड़े-बड़े प्राचीरों’ होगा; क्योंकि ‘प्राचीर’ पुंल्लिंग का शब्द है। इसी में प्राणिजगत के स्थान पर ‘प्राणिजगत्’ होगा। यहाँ ‘ऋत-ऋतुओं’ की वर्तनी अशुद्ध है, फिर इसका अर्थ क्या है, यह समझ से परे हो जाता है। ‘विद्युत से……….ताकत भी दी है के बीच के सभी वाक्यों के अन्त में ‘अर्द्ध विरामचिह्न’ (;) लगेंगे, जबकि ज्ञानाभाव के कारण ‘अल्प विरामचिह्न’ लगाये गये हैं। ‘शिक्षा’ और ‘चिकित्सा’ दो अलग-अलग क्षेत्र हैं, इसलिए ‘शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में’ की जगह ‘शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्रों में’ होगा। ‘सम्यक’ के स्थान पर शुद्ध शब्द ‘सम्यक्’ का व्यवहार होगा। प्रश्न ८९ में ‘वैज्ञानिक-चिन्तन’ और ‘वैज्ञानिकों के द्वारा’ की जगह क्रमश: ‘विज्ञानी-चिन्तन’ ‘विज्ञानियों के द्वारा’ होगा। प्रश्न ९२ भ्रामक है। इसमें ”भूगोल में छात्र 3 से 4 के मध्य अंक की प्रतिशत बढ़त है” अंकित है। ‘छात्र 3 से 4 के मध्य’ का अर्थ क्या है? यह बोधरहित है।

इन सभी भाषिक और ताथ्यिक अशुद्धियों को लेकर एक जाँचसमिति गठित करने की आवश्यकता है, जिससे कि विद्यार्थीघातक कृत्य करनेवाले अयोग्य और कुपात्र लोग के चेहरे समाज के सामने आ सके।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २५ अगस्त, २०२१ ईसवी।)
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