● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
जो सरकारी राजनीतिक दल मणिपुर मे अपनी ही सरकार मे सरे आम और खुले आम महिलाओँ को नंगा घुमाने, सामूहिक शारीरिक दुष्कर्म तथा हत्या की अमानवीय घटनाओँ पर निश्शब्द रहा; उसकी महिला राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री, महिला आयोग, उसके मुख्यमन्त्री आदिक मौन बने रहे, अब वही पश्चिमबंगाल मे विपक्षी दल की सरकार के विरुद्ध आग उगल रहे हैँ; उनकी तथाकथित प्रवक्त्रियाँ अब मुखर हो रही हैँ। मणिपुर मे तत्काल प्रभाव से राष्ट्रपति-शासन क्योँ नहीँ लागू कराया गया था? तब वहाँ का राज्यपाल चादर तानकर सो रहा था? उच्चतम न्यायालय के जिस न्यायाधीश ने कहा था :– मैने अपने ३० साल की नौकरी मे पश्चिमबंगाल-जैसी घटना नहीँ देखी थी। उस न्यायाधीश से प्रश्न है :– उस कथित न्यायाधीश की मणिपुर-जैसी नृशंस घटना पर क्योँ नहीँ प्रतिक्रिया आयी थी? आज भारत की राष्ट्रपति ‘पश्चिमबंगाल-चिकित्सिका- काण्ड’ पर कह रही हैँ :– मै भयभीत और डरी हुई हूँप्रश्न है :– मणिपुर-काण्ड को देखकर वे भयभीत क्योँ नहीँ दिख रही थीँ? उनके वक्तव्य से लग रहा है कि उनपर पश्चिमबंगाल मे राष्ट्रपति-शासन लगाये जाने का दबाव बढ़ रहा है।
मणिपुर मे बंगलादेश-जैसी स्थिति हो गयी थी; परन्तु भारत की महिला राष्ट्रपति पसीजी नहीँ, तब वे भयमुक्त बनी रहीँ। हर क़ीमत पर महिलाओँ की सुरक्षा की घोषणा करनेवाला प्रधानमन्त्री निश्शब्द बना रहा।
महिलाओँ के बलात्कारी भा० ज० पा०-मन्त्री चिन्मयानन्द, भा० ज० पा०-पूर्व-विधायक कुलदीप सेंगर, बाबा राम रहीम, आशाराम बापू इत्यादिक को किस आधार पर छोड़ा गया है? ऐसे अपराधियोँ को छोड़नेवाले राजनैतिक दल की सरकारोँ ने तो यह साफ़ संदेश दे दिया है :– हम अपने बलात्कारी मन्त्री और सांसदोँ-विधायकोँ का सम्मान करते हैँ।
मणिपुर उच्चन्यायालय के न्यायाधीश ने उस बीभत्स काण्ड का संज्ञान क्योँ नहीं किया था? उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशोँ की नैतिकता कहाँ थी? वहाँ सी० बी० आइ० से जाँच क्योँ नहीँ करायी गयी थी?
बदलापुर (महाराष्ट्र)-काण्ड, उत्तराखण्ड गेस्ट हाउस-काण्ड तथा उत्तरप्रदेश मे बड़ी संख्या मे महिलाओँ के साथ अमानवीय कृत्योँ को लेकर कथित सरकारी दल के प्रवक्ता और उनकी प्रवक्त्रियाँ लक़्वाग्रस्त हो गयीँ।
मुख्य प्रश्न है :– जब प्रकरण सी० बी० आइ० और उच्चतम न्यायालय के अन्तर्गत लाया जा चुका है तब भारतीय जनता दल की ओर से विध्वंसात्मक आन्दोलन क्योँ किया गया?
यदि सरकारी राजनैतिक दल के नेताओँ और समर्थकोँ को उकसाकर, पश्चिमबंगाल को अशान्त कर, राष्ट्रपति-शासन लगवाने के लिए उकसाया जा रहा है तो उसे जानना होगा कि किसी राज्य मे राष्ट्रपति-शासन तभी लागू कराया जा सकता है, जब उस राज्य मे ‘संवैधानिक संकट’ हो, जबकि पश्चिमबंगाल मे ऐसा नहीँ है। यदि किसी राज्य मे ‘विधि-व्यवस्था’ बिगड़ गयी हो तो उस आधार पर ‘राष्ट्रपति-शासन’ लागू नहीँ किया जा सकता। चिकित्सिका के साथ जो जघन्य कृत्य किया गया था, वह ‘सुरक्षा-व्यवस्था’ पर प्रश्न है, न कि ‘संवैधानिक संकट’ है। यदि राष्ट्रपति पश्चिमबंगाल मे राष्ट्रपति-शासन लागू कराना चहती होँ तो सबसे पहले अपने संवैधानिक सलाहकार से परामर्श कर लेँ; क्योँकि ऐसा न हो कि उच्चतम न्यायालय मे उनके निर्णय को ललकारते हुए, उनके आदेश को निरस्त करा दिया जाये।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २८ अगस्त, २०२४ ईसवी।)