‘सनातन धर्म’ क्या है?

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


वास्तव में, आज तक सनातन धर्म की अवधारणा को कोई भी सुस्पष्ट नहीं कर सका है। क्या सनातन धर्म तथाकथित ‘हिन्दू-धर्म’ (हिन्दू-धर्म नहीं है) की विरासत है अथवा ‘सर्वधर्म समभाव’ की आधारमूलक संरचना से सम्पृक्त है? सनातन धर्म प्रतीकमात्र है अथवा उसका कोई स्थूल रूप भी है?
इस सन्दर्भ में, एकपक्षीय नीयत की दुराशंका स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। इसमें ऐसे कौन-कौन-से तत्त्व अन्तर्भूत हैं, जिनके प्रभाव सर्वमान्य हों ? कोई ऐसा श्लोक है, जो इसे सर्वमान्यता दिला सके?
दृष्टि में वस्तुपरकता लाने पर यह निष्पत्ति प्राप्त होती है कि सनातन, शाश्वत तथा चिरन्तन धर्म मात्र ‘कर्त्तव्य’ है, न कि कोई ‘राजनीतिक’ धर्म। वास्तविक धर्म तो ‘कर्त्तव्य’ है। कर्त्तव्य करने का अधिकार सभी को है। सनातन तो निर्झर है; जो चाहे प्यास बुझा ले, फिर धर्म के नाम पर ‘मेरा-तेरा धर्म’ क्या होता है?