
बालसाहित्यकार-सम्पादक ठाकुर श्रीनाथ सिंह की जन्मतिथि
(१ अक्तूबर) पर विशेष प्रस्तुति
हिन्दी-पत्रकारिता के माध्यम से देश के स्वतंत्रता-आंदोलन में साहित्यिक क्रांति की ज्योति प्रज्वलित करने वालों में अग्रगण्य ठाकुर श्रीनाथ सिंह की जन्मतिथि के अवसर पर १ अक्तूबर को नगर के साहित्यकारों और प्रबुद्धजन ने श्रीनाथ सिंह का भावपूर्ण स्मरण किया था।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रधानमन्त्री विभूति मिश्र ने कहा– ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने बाल-मनोविज्ञान को भलीभाँति समझते हुए, उच्चकोटि का लेखन किया था। उन्होंने ‘इण्डियन प्रेस’ से प्रकाशित ‘बालसखा’, ‘सरस्वती’ आदिक पत्रिकाओं को सकारात्मक दिशा देने मे अपना उल्लेखनीय योगदान किया था। खेद है! साहित्यकार और पत्रकार ही उन्हें भूलते जा रहे हैं।”
भाषाविज्ञानी एवं समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया– साहित्य और पत्रकारिता में दक्ष ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने ‘उलझन’, ‘जागरण’, ‘प्रजामण्डल’, ‘कवि और क्रांतिकारी’, ‘सोमनाथ’, ‘झाँसी की रानी’ आदि उपन्यासों और ‘आविष्कारों की कथा’, ‘दो कुबड़े’, ‘पृथ्वी की कहानी’ आदि बाल-साहित्य की रचना की थी | इसके साथ ही इंडियन प्रेस से प्रकाशित ‘सरस्वती’, ‘बालसखा’, ‘देशदूत’, ‘दीदी’, ‘बालबोध’, ‘हल’ आदि पत्रिकाओं का संपादन कर वे यश के भागी बने।
प्राध्यापक डॉ० रंजना यादव ने कहा, “देश के बालसाहित्यकारों मे ठाकुर श्रीनाथ सिंह का नाम स्वर्णाक्षरों से लिखा जायेगा। प्रयागराज के मम्फोर्डगंज मुहल्ले मे रहकर उन्होंने जिस प्रकार की सारस्वत साधना की थी, वह उल्लेखनीय थी।
अनुसूया शर्मा ने कहा– ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने बाल और प्रौढ़-पत्रकारिता को जिस तरह से प्रोत्साहित किया था, वह वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक रहा है।