केंद्रीय इस्पात मंत्री, श्री राम चंद्र प्रसाद सिंह ने भारतीय इस्पात अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन (एसआरटीएमआई) द्वारा प्रस्तुत “लौह और इस्पात उद्योग में प्लास्टिक अपशिष्ट उपयोग” शीर्षक के निष्कर्षों पर विचार करने के लिए इस्पात मंत्रालय के सभी अधिकारियों की एक बैठक बुलाई। इस बारे में विस्तृत प्रस्तुति दी गई। इस्पात मंत्री ने कहा कि लोहा और इस्पात उद्योग कोक बनाने, ब्लास्ट फर्नेस आयरन बनाने, इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस इस्पात बनाने जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं में प्लास्टिक कचरे का उपयोग बड़े पैमाने पर जा सकता है। इसके अलावा इस माध्यम से कचरे से कंचन बनाने की माननीय प्रधानमंत्री की परिकल्पना को वास्तव में साकार किया जा सकता है। चूंकि अधिकांश प्लास्टिक अपशिष्ट उद्योग द्वारा उपयोग किए जाने वाले कोयले की तुलना में उच्च ऊर्जा के अलावा कार्बन और हाइड्रोजन का एक स्रोत हैं और राख, क्षारीय मामलों आदि से मुक्त हैं, प्लास्टिक कचरे के उपयोग से उद्योग को कई तरह से मदद मिलेगी। इसमें आयातित कोयले पर निर्भरता कम करना, प्लास्टिक कचरे के कुशल और सुरक्षित निपटान की राष्ट्रीय समस्या को सुलझाने के अलावा, जीएचजी उत्सर्जन को कम करना, दक्षता में सुधार करना आदि शामिल हैं। इस अवसर पर इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी उपस्थित थे। एक बार उपयोग वाले प्लास्टिक सहित सभी प्रकार के प्लास्टिक का उपयोग लौह और इस्पात उद्योग में किया जा सकता है। दुनिया भर के कई देश जैसे जापान, यूरोप आदि इस्पात निर्माण में इस तरह के प्लास्टिक का उपयोग […]