समझेँ ‘संघटन’ और ‘संगठन’ को
◆ हमारी ‘पाठशाला’ की किसी भी सामग्री को कोई भी व्यक्ति स्वतन्त्र और स्वच्छन्द होकर उपयोग करने का अधिकारी नहीँ है। यदि वह उपयोग करता है तो उसे सुस्पष्टत: उल्लेख करना होगा कि वह ‘किसके […]
◆ हमारी ‘पाठशाला’ की किसी भी सामग्री को कोई भी व्यक्ति स्वतन्त्र और स्वच्छन्द होकर उपयोग करने का अधिकारी नहीँ है। यदि वह उपयोग करता है तो उसे सुस्पष्टत: उल्लेख करना होगा कि वह ‘किसके […]
हमारे देश के हिन्दी-माध्यम मे अध्यापन करनेवाले शिक्षिका-शिक्षकवृन्द! ‘यस मैम’ और ‘यस सर’ के स्थान पर ‘जी महोदया’ और ‘जी महोदय’ का प्रयोग आरम्भ करायें। अँगरेज़ी के वे शब्द, जिनका समाज मे सामान्यत: प्रयोग होता […]
◆ ‘निबन्ध-विषयक’ अवधारणा प्रकट करने से पूर्व यह अवश्य बलपूर्वक कहना चाहता हूँ कि ‘रचना’ और ‘लेखन’ एक सारस्वत तपस्वी का कर्म है। बहुसंख्य लोग प्रकाशकों को रुपये देकर दो-चार पुस्तकें प्रकाशित करा लेते हैं […]
भाषाविज्ञानी और वैयाकरण आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने ६ मई को ‘हिन्दी-संसार ऑन-लाइन’ शैक्षिक संस्थान, सलोरी, प्रयागराज के सभागार मे लगभग ८०० छात्र-छात्राओं को लगातार ८ घण्टे, फिर ऑन-लाइन लगभग २,००० विद्यार्थियों को डेढ़ घण्टे […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आज काँग्रेस के मुखर प्रवक्ता पवन खेड़ा के विरुद्ध अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए, भारतीय जनता पार्टी की सरकार की असोम-राज्य- पुलिस-द्वारा दिल्ली वायुयान-केन्द्र से उन्हें यह कहकर अकस्मात् विमान […]
“तलब जी विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। कुछ लोग चाटुकारिता के बल पर पैठ बना लेते हैं, जबकि तलब जौनपुरी ने अपने व्यक्तित्व के बल पर अपनी पहचान बनायी है। उनकी रचनाओं मे कल्पना की […]
कृतियाँ :– ‘मीडिया और प्रेस-विधि’ और ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ ‘सामयिक प्रकाशन’, दिल्ली (स्वामी– श्री महेश भारद्वाज) से एक साथ प्रकाशित हुई थीं और आज ही के दिनांक (२६ नवम्बर) मे हस्तगत हुई थीं। दोनो ही पुस्तकें […]
“पं० केशरीनाथ त्रिपाठी एक कुशल विधिवेत्ता के साथ ही एक प्रभावकारी साहित्यकार भी हैं। उनकी काव्यकला मे जिस प्रकार का बिम्ब-विधान और प्रतीक-योजना लक्षित होती है, वह उनकी सम्यक् काव्यदृष्टि की परिचायक है। उनकी समयसत्य […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय नूरानी१ चेहरा सोता रहा, चश्मोचिराग़२ रोता रहा। मसाइल३ से वाक़िफ़ रहा ही कहाँ, ख़ुद-से-खुद-को ही ढोता रहा। अन्दाज़े बयाँ चश्मे नम४ का यहाँ, ज़ेह्न५ मे जाने क्या बोता रहा। कश्ती […]
शब्द– एहसास-एहसान, दम्पती, नवरात्र, ब्रह्मा तथा मनोरंजन। ★ एहसास– प्राय: जनसामान्य इस शब्द को ‘अहसास’ बोलता-लिखता आ रहा है, जो कि पूरी तरह से ग़लत है। कुछ लोग तो एहसास का हिन्दीकरण ‘अहसास’ समझते और […]
एक–जीवन-जरा ज़रा जरा, पात घास औ’ फूस।उष्मा-ऊर्जा क्षरित-सी, रक्तराशि ले चूस।।दो–निर्गम निष्कासन निकष, उत्पाती बन राग।जरे देह-कंचन-सदृश, फफक उठी हो आग।।तीन–भेदी भाड़ा-भीरु भर, मतिरतिगति का खेल।कंस-वंश अवतंस रिपु, मानो हों विष-बेल।।चार–पाप पंक प्रसून पुन:, काम-क्रोध-मद-लोभ।धैर्य […]
‘मौलश्री-पौधारोपण’ (‘पौधरोपण’ और ‘वृक्षारोपण’ अशुद्ध और अनुपयुक्त हैं।) कर कृत-कृत्य (कृतार्थ; संतुष्ट; पूर्ण-काम; आप्त-काम) हुआ ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आजका ‘विश्व-पर्यावरण-दिवस/विश्वपर्यावरणदिवस/, ‘विश्वपर्यावरण-दिवस (‘विश्व पर्यावरण दिवस’ अशुद्ध है।) मेरे लिए अर्थपूर्ण रहा :– विचारस्तर पर […]
मनुष्य ठहरी हुईं और गतिमान् मान्यताओं के साथ न्याय नहीं कर पाता है; क्योंकि गतिशीलता के ‘कु’ और ‘सु’ पक्षों से वह प्रभावित तो होता है, जबकि ‘ठहराव’ के प्रति उदासीन बना रहता है। ध्यातव्य […]
मेरे पत्रकारीय जीवन की एक झलक– मैने अपने दशकों की पत्रकारीय यात्रा मे कभी अपने जीवनमूल्यों के साथ समझौता नहीं किया, जो कि मेरा ‘युगबोध’ भी था। एक हिन्दी-दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक तथा अनियतकालीन (जिसकी […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय उस खूँटी को देख!जो शिथिल-सहमी-सकुची-संत्रस्त;क्रन्दन करती भार ढोती;फफकती-सिसकती;अपनी हथेलियों पर खिंची लकीरों को बाँचती;आशंका-सिन्धु में डूब और उतरा रही है।विषाक्त होती उसकी काया-छाया सेउसका मौन करता प्रश्नकेवल ‘प्रश्न’ बनकर रह […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–रूप-रंग की हाट में, तरह-तरह तस्वीर।राँझा बिकते हैं कहीं, कहीं बिक रहीं हीर।।दो–धर्म पंथ औ’ जाति की, बिगड़ गयी है रीति।ऐसे में कैसे भला, सब तक पहुँचे प्रीति।।तीन–रुपया-रुतबा-रूपसी, बहुत भयंकर […]
‘अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विकास परिषद्’, डिण्डिगुल, तमिलनाडु की आन्तर्जालिक व्याख्यानमाला सम्पन्न “आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय के ज्ञान का प्रभाव अनन्त काल तक रहेगा”– प्रो० पिलप्पा पिण्ड्या “माना कि आज विश्व में हिन्दी का बृहद् स्तर पर […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय प्रत्येक युग में समाज विभाजित रहा है; क्योंकि वह कर्म के धरातल पर संकुचित और क्षुद्र स्वार्थ-साधना करता आया है और उस कुत्सित सिद्धि के लिए स्वानुकूल नियम की रचना […]
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय विश्वास की डोर थामेसरक रहा थालक्ष्य की ओर—तन-मन मेंआशंकाओं की झंझावात समेटेडोर की मध्य-बिन्दु के स्पर्श की अनुभूतिबाहर से भीतर तकसिहरन भरती जा रही थी।अचानक…. सहसा!विश्वास की कुटिल चालेंचलायमान हो उठीं।विस्फारित […]
★ राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’ (प्रधान सम्पादक अवध रहस्य राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र) : हमारे अध्यापकवृन्द, प्रतियोगी विद्यार्थियों, सामान्य विद्यार्थियों तथा हिन्दी सीखने के प्रति लालसा जीनेवाले हिन्दी-अनुरागिजन के लिए वर्षान्त तक २३-३६/८ के बड़े […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–तुम बहार बनकर छाते रहो,ख़ुद को पतझर मुबारक करता हूँ।दो–ले गये सब यहाँ से रजनीगन्धा,मेरे हक़ में नागफनी छोड़ आये हैं।तीन–आँखों में आँखें डाल बातें सीखो,मुखौटा हटाओ तो कोई बात […]
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••प्रिय विद्यार्थिवृन्द!सारस्वत पथ पर अग्रसर रहे! कल आता है; क्योंकि कल १४ जुलाई है और दिन बुद्धवार। आप इसी दिन प्रतिसप्ताह ‘अमर उजाला उड़ान’ पत्रिका में ‘मार्गदर्शन’ स्तम्भ के अन्तर्गत ‘व्यक्तित्व-संवर्द्धन’ और ‘व्यक्तित्व-परीक्षण’ से सम्बन्धित […]