‘सर्जनपीठ’ का ‘अज़ीम शाइर फ़िराक़ गोरखपुरी और उनका काव्यदर्शन’-विषयक राष्ट्रीय आयोजन
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एक ख़ूबसूरत एहसास का नाम है, फ़िराक़। ग़ज़ल, नज़्म, रुबाई के साथ-साथ, समालोचना और इतिहास पर भी क़लम चलानेवाले रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी यदि ज़िन्दा हैं तो अपनी शाइरी मे। ‘गुल-ए-नग़्मा’, ‘मश्अल’, ‘नग़्म-ए-साज़’, ‘गुलबाग़’, ‘रूप’ को रचते हुए जिया तो ‘साधु और कुटिया’ ‘सत्यं-शिवं-सुन्दरम्’ के यथार्थ को भोगा भी। वे ताक़यामत अपनी इन कृतियों मे ज़िन्दा रहेंगे। ऐसे शाइर की १२७ वीं जन्मतिथि की पूर्व-सन्ध्या पर ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज के तत्त्वावधान मे ‘अज़ीम शाइर फ़िराक़ गोरखपुरी और उनका काव्यदर्शन’-विषयक एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन ‘सारस्वत सदन-सभागार, अलोपीबाग़, प्रयागराज से २७ अगस्त को किया गया था।
उर्दू-विभाग, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के निवर्तमान अध्यक्ष प्रो० सग़ीर अफ़्राहिम ने मुख्य अतिथि के रूप मे कहा, "फ़िराक़-जैसे संवेदनशील शाइर की रुबाइयों मे अपनी कौमी और वतनी जज़्बे की झंकार साफ़ सुनायी देती है। उनकी रचनाओं मे प्राकृतिक चित्रण नयेपन के साथ है। उनमें जीवन-मरण, ज़िन्दगी की सच्चाई तथा जीवनमूल्य का बोध प्रतिबिम्बित होता है। उनकी काव्यरचनाओं मे यमक, रूपक आदिक अलंकारों का मनोरम रूप प्राप्त होता है।"
उर्दू एकेडेमी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मे निदेशक प्रो० राहत अबरार ने अध्यक्ष के रूप मे बताया, "एक अज़ीम शाइर की पहचान होती है कि उसकी शाइरी आनेवाले ज़माने को भी गुदगुदाती रहे। फ़िराक़ साहिब आज हमारे बीच नहीं हैं; किन्तु उनकी शाइरी सभी भारतवासियों के दिल मे रची-बसी हुई है। उनकी शाइरी मे अद्भुत सौन्दर्यबोध की झलक मिलती है। यही कारण है कि उनकी शाइरी मे विविध प्रकार के हिन्दुस्तानी रंग दिखते हैं। उनकी कृतियाँ संस्कृत-श्लोक की भाव-प्रवणता से प्रभावित दिखती हैं। यही कारण है कि उनकी यही विविधता उन्हें दूसरों से बड़ा बना देती है।"
इस सारस्वत आयोजन मे शाइर श्रीराम मिश्र 'तलब जौनपुरी' ने विशिष्ट वक्ता के रूप मे अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "फ़िराक़ साहिब आत्मसम्मानी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार, विद्वान् तथा कुशल अध्यापक थे। उन्हें हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, अँगरेज़ी, संस्कृत आदिक भाषाओं मे महारत हासिल थी। उन्होंने उर्दू-साहित्य, ख़ासकर ग़ज़ल को जो ऊँचाई प्रदान की है, वह अप्रतिम है। उर्दू-साहित्य मे भारतीय संस्कृति-सभ्यता और वैदिक साहित्य के आख्यानों को पिरोने का श्रेय फ़िराक़ साहिब को जाता है। 'फ़िराक़ गोरखपुरी उर्दू कविता' उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध पुस्तक है, जिसमे उन्होंने उर्दू-कविता के विविध पहलुओं पर सम्यक् प्रकाश डाला है, जो पाठकों को उर्दू-साहित्य के बारे मे महत्त्वपूर्ण जानकारी देने मे अत्यन्त सहायक सिद्ध हो रही है। फ़िराक़ साहिब को देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों-सम्मानो से विभूषित किया जा चुका था।
'फ़िराक़ और उनकी रचनाशीलता' के प्रणेता और इस परिसंवाद-कार्यक्रम के आयोजक, भाषाविज्ञानी एवं समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बताते हैं, "फ़िराक़ की शाइरी मे आशिक़ और माशूक एक पृथक् रूप मे दिखते हैं। उनका आशिक़ न तो संकुचित है और न ही शिथिल, प्रत्युत वह मुक्त भावबोध और गाम्भीर्य का परिचायक है। फ़िराक़ साहिब पर कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि वे हिन्दी के घोर विरोधी थे, जबकि वे अशुद्ध हिन्दी बोलनेवालों को पसन्द नहीं करते थे। वे ग़लत उर्दू और अँगरेज़ी बोले अथवा लिखे जाने पर डाँट पिलाने से भी नहीं चूकते थे। उनका मत था कि सही उच्चारण के लिए फ़ारसी और संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है, हालाँकि उन्होंने संस्कृत-साहित्य भी अँगरेज़ी-माध्यम मे ही पढ़ा था। फ़िराक़ साहिब का मानना था कि संस्कृत से उन्हें जीवनदायिनी शक्ति मिलती है। उनका एक प्रासंगिक शे'र पेश है, ''किसी को चश्मे सियह के पयाम लाये हैं, ये 'मेघदूत' जो मंडला रहे हैं सिलसिलावार।''
आकाशवाणी, प्रयागराज के उद्घोषक कुँवर तौक़ीर अहमद ख़ान ने बताया, " रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा 'आइ० सी० एस०'-परीक्षा मे चयनित होने के बाद भी उस नौकरी को पैरों तले रौंद दिया था। मश्हूर कृति 'गुल-ए- नग़्मा' पर 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार से नवाजे़ गये फ़िराक़ साहिब एक ऐसे ज़िन्दादिल शाइर थे, जिन्होंने न सिर्फ़ भाषा की दीवारें तोड़ीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और स्वतन्त्रता-आन्दोलन मे भी अपनी आवाज़ बलन्द की थी; डेढ़ वर्षों तक कारावास की ज़िन्दगी भी जी थी। उनके दो मक़्बूल शे'र थे :– १- "मुद्दत से तेरी याद भी आई ना हमे,
और हम भूल गए हों ऐसा भी नहीं।” २- “बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं,
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं।”
'उर्दूघर' के महासचिव डॉ० सय्यद हसीन जिलानी ने फ़िराक़ साहिब की शाइरी की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया, "फ़िराक़ गोरखपुरी का सबसे बड़ा कारनामा यह है कि उन्होंने उर्दू-शाइरी मे हिन्दुस्तानी तहज़ीब को बहुत ही सलीक़े के साथ पेश किया है। यही कारण है कि उनकी कृति 'रूप' की रुबाइयाँ' हिन्दुस्तानी रस्मो रिवाज़ मे रची-बसी हैं। बेशक, उर्दू-अदब और शाइरी मे उनकी हैसियत एक 'रोल मॉडल' की तरह है। उनकी शाइरी में जवाँ दिल की धड़कन सुनायी देती है। हमे फ़ख़्र है कि हमारे शहर इलाहाबाद की एक अज़ीम शख़्सीयत फ़िराक़ साहिब का शुमार उर्दू के अज़ीम शाइरों में होता है।"