पन्त के काव्य मे संलक्षित होता प्रकृति का मनोरम रूप

पन्त की १२३ वीं जन्मतिथि के अवसर पर ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज के तत्त्वावधान मे २० मई को ‘सारस्वत सदन’, अलोपीबाग़, प्रयागराज के सभागार से ‘प्राकृतिक सौन्दर्य और कवि-दृष्टिबोध’ विषय पर एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया था, जिसमे देश के कई अंचलों के प्रबुद्धजन की सहभागिता रही।

  माण्ट्रियाल, कनाडा से साहित्यकार मोहन सपरा ने विचार प्रकट किया, "पन्त जी ने प्रकृति को आत्मिक तौर पर संगी स्वीकार कर, उसके बहुविध रूपों को कवितासंसार में सम्पदा प्रदान की है। तभी तो वे प्रकृति के सुकुमार कवि कहलाये और जन-जन के चहेते कवि भी। छायावाद के विशिष्ट कवि पंत जी ने मानवीकरण की जिस शैली को अपनी कविताओं में अनुस्यूत किया, वह आज भी अप्रतिम है और सौन्दर्यबोध का अद्भुत निदर्शन भी।"

 लातूर (महाराष्ट्र) से प्रोफ़ेसर पल्लवी पाटिल ने अपने विचार इस रूप मे व्यक्त किये थे, "पंत ने छायावाद के मखमली गलीचे पर पैर रखकर प्रगतिवाद के धूलभरे पथ पर चलते हुए, प्राकृतिक सौन्दर्य का कोना-कोना छान मारा है। वे नयी पीढ़ी को कथ्य और शिल्प की ज़मीन पर खड़ा करते हुए दिखते रहते हैं। छायावाद से प्रयोगवाद की सीढ़ियों को लाँघता हुआ वह कवि ही बूढ़ा चाँद है और उसकी छाया शशि। पंत जी मानते हैं कि शिव की कला ही सत्य और सुंदर है।"

  प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) से कवयित्री उर्वशी उपाध्याय का मन्तव्य है, "पन्त जी ने प्रकृति के हर तत्त्व में स्वयं को महसूस किया। उनके काव्य मे प्राकृतिक सौंदर्य का अन्तहीन आकर्षण  गहराई तक मौजूद है। पंत जी के काव्य में प्रकृति कभी सरस कभी संतृप्त दिखती है तो कभी उल्लसित, प्रफुल्ल तथा अनुराग से सराबोर हो जाती है।"


  इसी क्रम मे देवरिया (उत्तरप्रदेश) से कवयित्री प्रियंवदा पाण्डेय ने अपना मत व्यक्त किया था,"पन्त की कविताओं में अद्भुत ऐन्द्रजालिक आकर्षण है। वे अपनी कविताओं में कहीं बादल के रथ पर सवार होकर विश्ववेणु सुनते तो कहीं झरनों की रागिनी। पल-पल परिवर्तित प्रकृतिवेश मे जहाँ निसर्ग के वैविध्य का सौन्दर्य लक्षित होता है।"

प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) से डॉ० पूर्णिमा मालवीय ने कहा, "पंत जी को प्रकृति से अपार प्रेम था, जिसके कारण उनकी प्रत्येक रचनाओं में प्रकृति झलकती है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से चाँदनी,बादल, ज्योत्स्ना,वर्षा, वसंत, नदी, निर्झर, तितली आदि का जीवन्त चित्रण किया है।"


   आयोजक भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की अवधारणा है, "पन्त जी ने प्रकृति का संश्लिष्ट चित्रण करते समय उसकी पृष्ठभूमि का मनोरम प्रयोग किया है। वे भावुक और संवेदनशील होने के साथ-साथ एक गम्भीर विचारक भी रहे हैं। यही कारण है कि उनकी मनोमय सत्ता प्रकृति से तथ्य की ओर अतीव शीघ्र अग्रसर होती लक्षित होती है।"

   दमोह (मध्यप्रदेश) से डॉ० आशा राठौर ने बताया, "प्रकृति के प्रति विस्मय का भाव पन्त की कई कविताओं में गहन दार्शनिक विचार व्यक्त करते हुए दिखायी पड़ते हैं। उनके काव्य में सौंदर्य-बोध की व्यापक अनुभूति और उपयोगी सत्य के दर्शन होते हैं।"

   प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) से डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी ने कहा, "पंत जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से प्रकृति की अनुपम छवि को गढ़ने का काम किया है। उन्होंने अपने अनुभवजन्य प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी कोमलकांत पदावली के माध्यम से प्रस्तुत किया है।"

  औरंगाबाद (महाराष्ट्र) से डॉ० मजीद शेख़ ने बताया, "पंत के काव्य में प्रकृति जितनी सुकुमार और बहुरंगी छवियों के साथ जीवन की भावाभिव्यक्ति से संपृक्त है उतनी अन्य किसी कवि के काव्य में नहीं।"

  जयपुर (राजस्थान) से डॉ० सर्वेशकुमार मिश्र ने अपना कथन किया, "साहित्य को अपनी रचना से भूषित करनेवाले सुमित्रानंदन पंत का पूरा जीवन मानो प्रकृति-आराधना मे व्यतीत हुआ हो। बचपन मां से दूर हुआ तो प्रकृति को ही मां मान लिया। प्रकृति को प्रेयसी के रूप में भी देखा।"

सुलतानपुर (उत्तरप्रदेश) के प्रवक्ता प्रवीणकुमार पाठक ने कहा, "सुमित्रानंदन पंत की जीवन-शैली में उनके कृतित्व का प्रभाव अल्मोड़ा की प्राकृतिक सुषमा के आधार पर देखा जा सकता है। उनके लिए प्राकृतिक सौंदर्य के समक्ष अन्य सौंदर्य शून्य रहा है।"

अन्त मे, परिसंवाद-आयोजक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने समस्त सहभागियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की थी।