● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
सम्मान हमसे है, हम सम्मान से नहीं। सर्जक की एक ऐसी स्थिति आ जाती है, जहाँ उसे बड़ी-बड़ी धनराशिवाले सम्मान भी डिगा नहीं पाते; क्योंकि उसकी सारस्वत यात्रा इतना विस्तार पा चुकी रहती है कि सभी प्रकार के सम्मान उसके सम्मुख 'ठिगने-से' प्रतीत होने लगते हैं। वह अपनी सर्जनधर्मिता ('सृजनधर्मिता' अशुद्ध है; क्योंकि 'सृजन' सार्थक शब्द नहीं है।) के उस क्षितिज का संस्पर्श कर चुका रहता है, जहाँ से उसमे किसी भी प्रकार की पुरस्कार-सम्मान तथा पद-प्रतिष्ठा के प्रति कोई आकर्षण और लिप्सा रह ही नहीं जाती, जबकि जिन्हें समाज महान् साहित्यकार-कथाकार-लेखक-समालोचक, कवि-कवयित्री के रूप मे जानता और मानता है, उनमे से लगभग सभी अपने 'यौवन से वयोवृद्ध' तक की अवस्था मे (यहाँ 'आयु' अशुद्ध है।) 'इस संस्थान से उस अकादमी तक' नितान्त अयोग्य महिला-पुरुष अधिकारियों के सम्मुख 'रिरियाते और लरियाते' हुए, पुरस्कार-सम्मान की भिक्षा माँगते हुए, अनेकश: "रँगे हाथों" ('रंगे' अशुद्ध है।) धरे जाते हैं। किसी कृती कृतिकार की रचना को पाठकवर्ग शिरोधार्य कर ले, उसके लिए उससे बड़ा न तो कोई पुरस्कार है और न ही सम्मान; क्योंकि किसी भी कर्तृत्व ('कृतित्व' अशुद्ध शब्द है।) की वास्तविक सराहना करनेवाला 'पाठकवर्ग' ही (यहाँ 'उसकी' अशुद्ध है।) उसके रचनासंसार का 'प्राणतत्त्व' होता है।
मै अपने को 'धन्य' मानता हूँ, जो आज तक किसी भी संस्थान या फिर अकादमी आदिक मे कुण्डली मारे 'भुक्खड़' और 'कुपात्र' अधिकारियों की छाया तक से दूरी बनाये रखने मे समर्थ बना हुआ हूँ; क्योंकि मै इन सभी पुरस्कार-सम्मानो से नितान्त परे हो चुका हूँ।
सम्मान यदि घुटने टेकने के बाद और किसी से कहने-कहलवाने के बाद मिले तो वह किसी 'मृतक रचनाकार' का सम्मान कहा जायेगा। वह रचनाकार ही क्या, जिसमे आत्माभिमान न हो।
किसी भी प्रकार का सम्मान वह कहलाता है, जो रचनाधर्मी को उसके वास्तविक रचनाकर्म पर बिना किसी 'माध्यम' और 'पद' के प्राप्त हो।
आज संस्थानो और अकादमियों मे मन-मस्तिष्क से 'दिव्यांग' जिस भाँति से, जिस प्रकार के अधिकारी बैठा दिये गये हैं, उनसे उनके निर्णय मे 'पारदर्शिता' की अपेक्षा करना, चिन्तन और विचारपक्ष का अपव्यय है; क्योंकि वे सभी अपनी योग्यता नहीं, प्रत्युत 'जुगाड़तन्त्र' के सम्मुख करबद्ध मुद्रा मे प्रशस्ति-गायन कर, 'चाटुकार बाबू' के रूप मे बैठाये जाते हैं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित-- आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १५ मई, २०२२ ईसवी।)