‘मुक्त मीडिया’ मे हिन्दीभाषा की दुर्दशा समाज-घातक है

‘सर्जनपीठ’ और ‘भारतीभवन’ के संयुक्त तत्त्वावधान मे हिन्दी-पक्ष (हिन्दी-पखवाड़ा) के अवसर पर १७ सितम्बर को ‘मुक्त मीडिया’ (सोशल मीडिया) मे हिन्दी : कितनी हिन्दी?’ विषय पर एक बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन ‘भारती भवन पुस्तकालय-सभागार’, लोकनाथ, चौक, प्रयागराज मे किया गया था, जिसमे भाषा, शिक्षा, साहित्य, समाज, पत्रकारिता आदिक क्षेत्रों के विषय-विशेषज्ञों ने सहभागिता की थी।

आरम्भ मे भारती भवन पुस्तकालय के अध्यक्ष स्वतन्त्र पाण्डेय ने अभ्यागतवृन्द का स्वागत किया था।

मुख्य अतिथि के रूप मे हिन्दी-प्राध्यापक डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी ने बताया, “हमे उपभोक्तावादी होने की जगह ‘मानवतावादी’ होना चाहिए। हम अपने बच्चों मे किस प्रकार की भाषा का संस्कार डाल रहे हैं, इसे समझना होगा; क्योंकि इसी का प्रभाव हम मुक्त मीडिया मे प्रयुक्त अशुद्ध हिन्दीभाषा के रूप मे देख रहे हैं।”

विशिष्ट अतिथि और पूर्व-प्रवक्ता डी० के० सिंह ने कहा, “मुक्त मीडिया को हमे दो भागों मे बाँटकर देखना होगा :– पहला, जहाँ अभिव्यक्ति के लिए लघुतर मार्ग अपनाया जाता है वहाँ हमे ‘हिन्दी’ नहीं मिलेगी; दूसरा, विद्वान् लोग जब कुछ भी लिखते हैं तब उसे लिखने के बाद पढ़ने की कोशिश नहीं करते। वहाँ हमे हिन्दी तो मिलती है; परन्तु शुद्धता का अभाव दिखता है।”

पूर्व-सहायक अध्यापक डॉ० कल्पना वर्मा अध्यक्ष के रूप मे समाहार करते हुए कहा, “मुक्त मीडिया प्रतीकात्मक है। हम नकारात्मक को सकारात्मक कैसे बनाये, हमारा बल इस पर होना चाहिए। हम ‘फेस बुक’ पर किसी के लेखन को तभी सुधारें जब हम पूरी तरह से विद्वान् हों, अन्यथा उसकी प्रतिक्रिया का अन्त कहाँ होगा, कोई नहीं जानता; गाली-गलौच की स्थिति आ जाती है।”
सहायक अध्यापक डॉ० सरोज सिंह ने कहा, “आज माँ के पास समय नहीं है कि वह अपने बच्चे के लेखन को देखे और सुधारे और न ही अध्यापक के पास अवकाश है कि विद्यार्थियों की हिन्दीभाषा सुधारे। आज जिस तरह का लेखन मुक्त मीडिया मे हो रहा है, उसकी दुर्दशा के लिए हिन्दीभाषी ज़िम्मादार (‘ज़िम्मेदार’ अशुद्ध है।) हैं।”

आयोजक, भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, हम यदि मुक्त मीडिया मे अपने किसी भी प्रकार के लेखन को समझते हुए प्रसारित करेंगे तब उसमे अशुद्धियाँ कम दिखेंगी। आपको फेसबुक, ह्वाट्सऐप्प, मेसेंजर आदिक मे किसी के भी लेखन मे अशुद्धियाँ दिखें तो अपनी टिप्पणी मे ‘संशोधित–’ टंकित करके उन्हें शुद्ध कर दें; जैसा कि मै करता आ रहा हूँ।”

हिन्दी-प्रवक्ता डॉ० आर० ए० ‘मानव’ ने कहा, “हिन्दीभाषा मे अशुद्ध लेखन के लिए आज की वस्तुनिष्ठ शिक्षाप्रणाली दोषी है, जिसके कारण लोग लिखने की सामर्थ्य खोते आ रहे हैं। जो भी ग़लत लिखे, उसे टोका और सुधारा जाना चाहिए।”

अध्यापिका और कवयित्री चेतना प्रकाश ‘चितेरी’ ने कहा, “मै अपने बच्चों से सीखती हूँ। मै जब लेखन करके मुक्त मीडिया मे प्रसारित करती हूँ तो गुरु जी (आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय) के अलावा कोई दूसरा नहीं दिखता, जो सुधारता हो।”

साहित्यकार पं० राकेश मालवीय ‘मुसकान’ ने कहा, “हमे हमारी मूल भाषा और किताबों से हटने के कारण अशुद्धियाँ होती आ रही हैं। मुक्त मीडिया मे विद्वान् दिखते हैं; मगर ग़लत लिखते हैं।”

सहायक अध्यापक डॉ० आभा त्रिपाठी ने कहा, “मुक्त मीडिया हमारे व्यावहारिक पक्ष से जुड़ा हुआ है। हम शिक्षकों का दायित्व है कि अपने विद्यार्थियों को शुद्ध हिन्दी-लेखनहेतु प्रेरित करें, जिससे कि वे मुक्त मीडिया मे शुद्ध शब्द-व्यवहार कर सकें।”

सहायक अध्यापक डॉ० अनुपमा सिंह ने बताया, “इण्टरनेट मे बहुत-से डिवाइस हैं, जिनकी सहायता से हम शुद्धता ग्रहण कर सकते हैं।”

प्राचार्य और साहित्यकार डॉ० पूर्णिमा मालवीय ने कहा, "पहली पाठशाला माँ होती है। माँ यदि वर्णमाला, कविता आदिक का पठन और लेखनस्तर पर शुद्ध ज्ञान करा दे तो वह फलीभूत होता है।"
 
तौक़ीर अहमद ने बताया, "यह इतना गम्भीर विषय है कि एक निश्चित अन्तराल पर कर्मशाला का आयोजन करते रहना होगा।"
 
कवयित्री शाम्भवी ने कहा, "मुक्त मीडिया मे न तो हिन्दीभाषा की दशा-दिशा सही दिख रही है और न ही अँगरेज़ी-भाषा की।"

वरिष्ठ पत्रकार एवं कवयित्री उर्वशी उपाध्याय ने कहा, "हमारी बुनियाद ही खोखली हो चुकी है। हम काग़ज़-क़लम को छोड़ रहे हैं, जो कि हमारी सबसे बड़ी ग़लती है।''
    
एक सजग पाठक चारुमित्र ने बताया, "मुक्त मीडिया मे जो देश के जाने-माने विद्वान् हैं, वे विरामचिह्नो और वर्तनी की बहुत अशुद्धियाँ करते हैं।"
  
पुस्तकालयाध्यक्ष दुर्गानन्द शर्मा ने कहा, "लोग यदि मुक्त मीडिया मे सरलतम भाषा का प्रयोग करेंगे तो अशुद्धियाँ कम दिखेंगी।"

इस अवसर पर सुधा अग्रवाल, शिवाक्षी कसेरा, संजना कसेरा, दीपक अग्रवाल, मो० उस्मान, राजेन्द्रप्रसाद श्रीवास्तव, विवेक मिश्र आदिक की समुपस्थिति सराहनीय रही।

अन्त मे, डॉ० पूर्णिमा मालवीय ने अभ्यागतवृन्द के प्रति अपना कृतज्ञता-ज्ञापन किया था।