पड़ोस प्रथम नीति : मदद में भारत सबसे आगे सामाजिक के साथ आर्थिक विकास पर जोर

तेज़ी से बदलते परिदृश्य के साथ बाहरी मामलों से निपटने के लिये नीतियाँ भी बदलती रहती हैं। इसलिए भारत भी समय-समय पर अपनी विदेश नीति में ऐसे बदलाव करता रहता है ताकि समयानुसार स्थितियों का सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। विदेश राज्य मंत्री, वीo मुरलीधरन ने लोकसभा के चालू सत्र में कुछ विवरण प्रदान किए हैं। लोकसभा में पड़ोस प्रथम नीति पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बताया है की ‘पड़ोस प्रथम नीति’ के तहत भारत अपने पड़ोसी देशों की मदद कर रहा है, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका को कई परियोजनाओं के माध्यम से सशक्त किया जा रहा है।

भारत की इस नीति का उद्देश्य भारत के नेतृत्व में क्षेत्रवाद के ऐसे मॉडल को प्रोत्साहित करना है जो पड़ोसी देशों के भी अनुकूल हो। पड़ोसी देशों को विकास सहायता मुख्य रूप से ऋण सहायता, सहायता अनुदान और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से प्रदान की जाती है। सब जानते हैं की हल ही में श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी के कारण भोजन, ईंधन और दवाओं सहित आवश्यक वस्तुओं के आयात में बाधा आ रही है। ऐसे में भारत सरकार ने पिछले 10 वर्ष में रेलवे, बुनियादी ढांचा, रक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम और उर्वरकों जैसे क्षेत्रों में श्रीलंका को 185.06 करोड़ डालर की आठ ऋण सुविधाएं प्रदान की है। जो इस आर्थिक संकट में वहां की जनता के लिए वरदान साबित हो रहा है।

बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका में 162 परियोजनाओं के लिए 14.27 बिलियन अमरीकी डॉलर की कुल 37 ऋण सहायता प्रदान की गई हैं। अफ्रीका के 42 देशों को 357 परियोजनाओं के लिए 14.07 बिलियन अमरीकी डॉलर की अन्य 222 ऋण सहायता प्रदान की गई हैं। इन परियोजनाओं में सड़क, रेलवे, बिजली, बंदरगाह और पोत परिवहन, दूरसंचार, स्वास्थ्य, शिक्षा और विमानन जैसे विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया गया है। गौरतलब है की ऋण सहायता के तहत परियोजनाओं के लिए भारतीय कार्यान्वयन एजेंसियों का चयन 31 मार्च 2022 को वित्त मंत्रालय द्वारा जारी मत्रिमंडल-अनुमोदित आईडीईएएस दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाता है।

(रिपोर्ट: शाश्वत तिवारी)