पाप-पंक में डूबे राजनेताओं का सामूहिक चरित्र

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

हमारे प्रथम श्रेणी के राजनेताओं की आँखों में विश्वासघात के चित्र झिलमिलाते आ रहे हैं। वे आत्मविश्वास, आत्मबल तथा इच्छाशक्ति से रहित हैं; चरित्र, चाल, चेहरे से क्षत-विक्षत हैं; मनसा-वाचा-कर्मणा हीनतम हैं; पुरुषार्थ से क्षीण हैं; परम विश्वासघाती हैं तथा शब्दों की जुगाली कर, विश्व के महान् लोकतन्त्रीय देश के अस्तित्व और उसकी गरिमा के साथ ‘सौदा’ करने में प्रथम श्रेणी के ‘सौदागर’ साबित हो चुके हैं।

प्राय: देखा गया है कि जो दरिद्र और अभावग्रस्त परिवार में जन्मे-पले-बढ़े, उनमें से अधिकतर जब एक ऐसी स्थिति में आ जाते हैं, जहाँ धन-दौलत, ऐशो आराम, वैभव-विलासिता उनके चरण पखारती हो तब उनके रूप-रंग और तेवर बदल जाते हैं।

आज भारत की राजनीति में ऐसे ही लोग अपनी बेहद घृणित मानसिकता का परिचय देते आ रहे हैं। अतीत में दारिद्र्यपूर्ण जीवन जीनेवाले ऐसे राजनीतिज्ञ लोग अपने पाँवों के छालों की ‘प्लास्टिक सर्जरी’ कराकर, अब ‘अभिजात्य’/’कुलीन’/ ‘सम्भ्रान्त’ कहलाने लगे हैं।

वे लोग कहने के लिए नितान्त निर्धन परिवार से सम्बन्धित रहे हैं; परन्तु आज वे एक ऐसी हैसियत में हैं, जहाँ ‘देश’ को ‘बन्धक’ रखकर अपनी अतृप्त घृणित अभिलाषा को पूरी करने से भी नहीं चूक रहे। यह अब एक तीव्र घटना के रूप में क्रमश: सामने आने लगा है।

आज ऐसे और उनके संकेत पर नाचनेवाले लोग देश की जनता के साथ ‘क्रीतदास’ की तरह से व्यवहार कर रहे हैं। वे ‘राष्ट्रवाद’ की बात तो करते हैं; परन्तु राष्ट्र को हिन्दू-मुसलमान, दलित, अगड़ा-पिछड़ा आदिक के रूप में बाँटते हुए, अपने निर्लज्ज चेहरे सगर्व दिखा रहे हैं और देशवासियों की आँखों में बार-बार धूल झोंक रहे हैं; वहीं एक ऐसा समूह भी है, जो ऐसे आचरणहीन लोग की आरती उतारते दिख रहे हैं।

अब लगने लगा है, सत्ता का उपभोग ‘गुण्डे’ क़िस्म के लोग ही कर सकते हैं; निष्ठावान् लोग के लिए राजनीति में कहीं-कोई जगह नहीं रह गयी है। वे राजनीति में पहुँचकर जब ईमानदारी और नैतिकता की बात करेंगे तब उनके ही दल के तथाकथित सभ्यगण/गणमान्य उनकी हत्या करा देंगे। यह आज़ादी के बाद से भारतीय राजनीति के इतिहास में कई स्थलों पर और प्रसंगों में देखा गया है। हर तरह के कुचक्र करने में सिद्धहस्त लोग राजनीति का ‘चेरी’ के रूप में ‘भोग’ करते आये हैं और स्वयं को निर्दोष-निष्पाप का प्रमाणपत्र देते आये हैं। है न विडम्बनापूर्ण राजनीतिक दुर्घटना?..!

ऐसे ‘लोग’ के ‘आचरण’ को देखकर ‘बेहया’/’बेशर्म’ का पौधा अपना नाम बदलने के लिए सोच रहा है। वह निर्लज्ज पौधा कैसे और कहाँ से धरती से जुड़ आता है, आज तक किसी को ज्ञात नहीं।

ऐसे राष्ट्रघातियों को जानना होगा कि हिन्दू और मुसलमान किसी भी राजनीतिक दल की बपौती नहीं हैं कि जो चाहे उन पर अपने ‘लिप्यधिकार’ (कॉपी राइट) की मुहर लगा दे और वे जैसा चाहें, वैसा साम्प्रदायिक/धार्मिक उन्माद फैलाकर अपना उल्लू सीधा करें।

देश में ‘दलित जाति की घिनौनी’ राजनीति और अगड़े-पिछड़े की बीभत्स चाल चलनेवालों के राष्ट्रद्रोहात्मक चक्रव्यूह का बेधन अब सभी को मिलकर करना होगा। आरक्षण को पूर्णत: समाप्त कराना होगा। इसके लिए जातीय बन्धन से स्वयं को विमुक्त करना होगा, ताकि कुण्ठित-लुण्ठित नेताओं को राजनीति के तवे को साम्प्रदायिकता की आग में गरम करते हुए, जाति और वर्ग की रोटियाँ सेंकने का अवसर न मिल सके।

सच तो यह है कि कुत्सित-संदूषित मनोवृत्तिवाले राजनेताओं का दिमाग़ ‘आठवें आसमान’ पर देश की जनता ही पहुँचाती आ रही है, अन्यथा राजनेताओं का दुस्साहस नहीं होता कि ‘हमारे राष्ट्रधर्म’ की नीलामी में सभी एक साथ शामिल होते। क्या पक्ष, क्या विपक्ष– लोकतन्त्रीय प्रयोगशाला में सभी की चड्ढियाँ उतर चुकी हैं।

देश के दिग्भ्रमित नागरिक! अब भी समय है, चेतिए; अन्यथा भीषण दारुण दु:ख भोगने के लिए स्वयं के मानस को बनाये रखिए।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ जुलाई, २०२० ईसवी)