सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज का मंत्र देने वाले प्रभु श्री कृष्ण के अवतरण दिवस पर विशेष

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:, न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः... के प्रणेता का प्राकट्य दिवस है जन्माष्टमी

राघवेन्द्र कुमार राघव-


‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ का मन्त्र विश्व को देने वाले भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव ही कृष्णजन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। योगेश्वर श्री कृष्ण के भगवद्गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। मैं कौन हूँ? यह देह क्या है? इस देह के साथ क्या मेरा आदि और अन्त है? देह त्याग के पश्चात् क्या मेरा अस्तित्व रहेगा? यह अस्तित्व कहाँ और किस रूप में होगा? मेरे संसार में आने का क्या कारण है? मेरे देह त्यागने के बाद क्या होगा, कहाँ जाना होगा?

किसी भी जिज्ञासु के हृदय में यह बातें निरन्तर घूमती रहती हैं। हम सदा इन बातों के बारे में सोचते हैं और अपने को, अपने स्वरूप को नहीं जान पाते। गीता शास्त्र में इन सभी के प्रश्नों के उत्तर सहज ढंग से श्री भगवान् ने धर्म संवाद के माध्यम से दिये हैं। भगवद्गीता जैसा ग्रंथ मनुष्य के वश के बाहर है और इसे दुनियाँ भर के विद्वान स्वीकार भी करते हैं । स्पष्ट है कि श्री कृष्ण पूर्ण ईश्वरीय अवतार थे । जन्माष्टमी इन्हीं आदिदेव श्री कृष्ण का प्राकट्य दिवस है । जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा पूरी आस्था व उल्लास से मनायी जाती है। स्वधर्म की अनुपम शिक्षा देकर समाज में सबको काम देने और व्यर्थ प्रतिद्वंदिता समाप्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि…

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वानुष्ठितात ।

स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम ॥

अर्थात अच्छी प्रकार आचरण किये हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म श्रेष्ठ है ; क्योंकि स्वभाव से नियत किये हुए स्वधर्म रूप कर्म को करता हुआ मनुष्य पाप को प्राप्त नहीं होता ।

श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में बुधवार की मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व लिया था। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है। श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्तिहटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेते हैं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जात है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। जन्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है । रासलीला का आयोजन होता है। कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्त भव्य कृष्ण झूला, श्री लड्डू गोपाल के लिए कपड़े और उनके प्रिय भगवान कृष्ण को खरीदते हैं। सभी मंदिरों को खूबसूरती से सजाया जाता है और भक्त आधी रात तक इंतजार करते हैं ताकि वे देख सकें कि उनके द्वारा बनाई गई खूबसूरत खरीद के साथ उनके बाल गोपाल कैसे दिखते हैं।