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— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
केरल के कोझिकोड/कोषिक्कोड के ‘करीपुर’ वायुयानकेन्द्र के ‘धावनपथ’ पर ७ अगस्त को सन्ध्या ७.४० के लगभग भारत के अन्तरराष्ट्रीय विमान के फिसलने से वह लगभग ३५ फ़ीट खाई में गिरा था। विमान के दो टुकड़े हुए; विमानचालक, राष्ट्रपति स्वर्णपदक-प्राप्त विंग कमॉण्डर दीपक साठे और सह-विमानचालक की मौत हो चुकी थी; बड़ी संख्या में यात्री हताहत हुए हैं। विमान में कुल १९० लोग सवार थे, जिनमें १७४ वयस्क, १० बच्चे तथा ६ क्रू मेम्बर थे। यह सुखद संयोग रहा कि विमान में आग नहीं लगी थी, अन्यथा यात्रियों को सुरक्षित बचा पाना बहुत मुश्किल होता। ऐसा इसलिए कि आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि ऐसी दुर्घटना में आग लग ही जाती है। वैसे भी यदि थोड़ी-बहुत आग लगी होगी, जो कि अभी स्पष्ट नहीं है, तो उसे बुद्धिमत्ता और शीघ्रता के साथ बुझा दिया गया होगा।
वर्षा के कारण धावनपथ पर फिसलन थी। वर्षा, हवा आदिक के कारण मौसम और वातावरण में दृश्यता बहुत कम हो चुकी, जिसके कारण विमान-चालक असमंजस की स्थिति में आ चुका था, प्रभावत: विमान असन्तुलित हो गया था। दृश्यता २,००० मीटर की थी। ऐसे में, एक गम्भीर प्रश्न उठता है– जब दृश्यता इतनी कम थी तब रात्रि के आरम्भकाल में विमान को उतरने के लिए ‘हरी झण्डी’ क्यों दी गयी थी? अब यह जाँच का विषय बन चुका है।
उक्त विमान ने ‘वन्दे भारत मिशन’ के अन्तर्गत कोरोना-विषाणु के कारण विदेशों में फँसे भारतीय लोग को स्वदेश लाने के लिए दुबई से अपराह्न ४.४५ पर कालिकट के लिए उड़ान भरी थी। कालिकट में पिछले चार दिनों से वर्षा हो रही है। खाई में विमान के मलबे बिखरे हुए हैं, जिनमें कई यात्री दबे हुए हैं। दुर्घटनाग्रस्त विमान से सभी यात्रियों को निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया गया है।
बताया जाता है कि एअर इण्डिया एक्सप्रेस का बोइंग विमान दशकों वर्ष पुराना था। हमारे पाठकगण को स्मरण हो तो वर्ष २०१० में २२ मई को एअर इण्डिया का विमान मंगलौर वायुयान केन्द्र पर नीचे उतरते समय (लैण्डिंग) एक चट्टान से टकरा गया था, जिसके कारण १६० यात्रियों की दर्दनाक मृत्यु हुई थी। उस अत्याधुनिक विमान को ‘बोइंग– ७३०-८००’ को १५ जनवरी, २००८ ई० को एअर इण्डिया-श्रृंखला के अन्तर्गत किया था, जिसे साइबेरिया के कैप्टन ज्लाटको ग्लूसिया उड़ा रहे थे। उनके पास १० हज़ार घण्टे की उड़ान का अनुभव था, जो कि एक श्रेष्ठ और कुशल विमानचालक की विशेषता होती है।
केरल पर्वतीय क्षेत्र है। वर्षा होने के कारण उसके निचले क्षेत्र में प्राय: पानी भर जाता है। ऐसे ही निचले इलाकों में वायुयान-केन्द्र बनाये गये हैं, जो सँकरे होते हैं और उन पर कोई सामान्य विमानचालक विमान नहीं उतार सकता है। ए०ए०आइ० (भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण) ने समस्त वायुयानकेन्द्रों को निर्देश किया था कि चौड़ाईवाले विमानों का उपयोग करनेवालों के लिए धावनपथ २४० मीटर का होना चाहिए, जबकि दुर्घटनास्थलवाला कालिकट का धावनपथ केवल ९० मीटर का है। इसी सँकरेपन के कारण ‘विमान-दुर्घटना’ की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। उसे ‘टेबिल टॉप’ भी कहा जाता है। उसके लिए अत्यन्त अनुभव विमान चालक की आवश्यकता पड़ती है। बताया जाता है कि इस दृष्टि से दुर्घटना में मारे गये विमानचालक दीपक साठे एक अति कुशल और अनुभवसम्पन विमानचालक थे। ऐसे में, दुर्घटना का मुख्य कारण क्या था, इसकी जानकारी ‘ब्लैक बॉक्स’ से प्राप्त हो सकेगी।
यह अनुकरणीय उदाहरण है कि कालिकट के आस-पास के उदार नागरिक बड़ी संख्या में अपने-अपने वाहन लेकर दुर्घटना से प्रभावित यात्रियों को सम्बन्धित उपचारस्थलों पर ले जा रहे हैं। वहाँ के अधिकारीगण भी यथाशक्य सहयोग करने में लगे हैं। वहाँ कीप सुरक्षाव्यवस्था भी चाक-चौबन्द दिख रही है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ७ अगस्त, २०२० ईसवी।)