औषधभरी सुई ‘सुईकरण’ है अथवा ‘टीकाकरण’?

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

रोग-प्रतिरोधक शक्तिवृद्धि के लिए जो सुई लगायी जा रही है, क्या वह ‘टीकाकरण’ है? चेचक इत्यादिक रोग के उपचार के अन्तर्गत जो ‘टीका’ लगाया जाता था, उसके नीचे का भाग ‘वृत्ताकार’ होता था, जिसकी तली में कई सुइयाँ होती थीं। उसे निर्धारित बाँह में ‘गोल घुमाते हुए’ लगाया जाता था, जिसमें सभी सुइयाँ बारी-बारी से चुभती थीं और अत्यन्त पीड़ा का अनुभव होता था। उसे जहाँ लगाया जाता था, उस स्थान पर टीकानुमा एक आकार बन जाता था। यही कारण है कि उसे ‘टीका’ कहा जाता था।

आज, जिसे ‘वैक्सिन’ (‘वैक्सीन’ अशुद्ध है।) कहकर लगाया जा रहा है, वह तो औषधिभरी एक सुई है। उसे लगाने की भी वही प्रक्रियाएँ है, जो ‘सामान्य’ सुइयाँ लगाने की होती हैं।
अब कृपया उक्त विषय पर विचार करें।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १६ मई, २०२१ ईसवी।)