मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग के ‘मेहरा’ चेअरमैन को तत्काल प्रभाव से हटाया जाये

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

बेशक, मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग का चेअरमैन ‘मेहरा’ है। पिछले १९ जून को आयोजित मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की ओर से आयोजित ‘मध्यप्रदेश पी० सी० एस० (प्रा०) परीक्षा– २०२१’ के प्रश्नपत्र मे एक ऐसा प्रश्न किया गया था, जो कि देश मे आग लगाने का काम करनेवाला सिद्ध हो सकता है और जिस जाहिल प्राश्निक ने कथित प्रश्न का चयन किया है, उसे तत्काल देशद्रोह के आरोप मे न्यूनतम ६ वर्षों का दण्ड दिया जाना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि वह प्रश्न ऐसा है, जिसका कोई ‘सर्वमान्य’ विकल्प हो ही नहीं सकता। वह प्रश्न ‘कश्मीर’ से सम्बन्धित है, जिसके अन्तर्गत प्राश्निक की शब्दावली मध्यप्रदेश-शासन की ‘आगलगाऊ’ मनोवृत्ति को प्रतिपादित करती है।

उस प्रश्नात्मक वाक्य को देखें, समझें तथा अनुभव करें :–
“क्या भारत को कश्मीर को पाकिस्तान को दे देने का निर्णय कर लेना चाहिए?”

इस पर जब आयोग के कथित ‘मेहरा’ से स्पष्टीकरण मागा जा रहा है तब वह पल्ला झाड़ता दिख रहा है। आयोग के उस चेअरमैन को यह अच्छी तरह से जानना चाहिए कि मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग के अन्तर्गत किसी भी अच्छाई-बुराई के लिए सबसे पहले वही उत्तरदायी होगा।

उक्त आयोग के चेअरमैन डॉ० राकेशलाल ‘मेहरा’ को इस बात की समझ नहीं है कि किसी भी प्राश्निक-द्वारा लिखे अथवा टंकित करके भेजे गये प्रश्नपत्र की गम्भीरता और सार्थकता को पहले समझा जाता है; विशेषज्ञ-समिति को दिखाया जाता है, फिर उस प्रश्नपत्र की विश्वसनीयता मान्य होती है।

मध्यप्रदेश-शासन ऐसे कुकृत्यों के लिए कई बार प्रतिष्ठा अर्जित कर चुका है। काँग्रेस-दल की ओर से मुख्यमन्त्री बनाये गये कमलनाथ के शासनकाल मे इसी आयोग की ओर से १२ जनवरी, २०२० ई० को आयोजित राज्यसेवा (प्रा०) परीक्षा– २०२० के प्रश्नपत्र मे जनजाति ‘भील’ से सम्बन्धित घोर आपत्तिजनक पाँच प्रश्न किये गये थे, तब विपक्ष मे बैठी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता, शिवराज सिंह चौहान, जो वर्तमान मे मुख्यमन्त्री हैं, ने कमलनाथ सिंह से उनके त्यागपत्र की माग तक कर डाली थी। भारतीय जनता पार्टी के उग्र प्रदर्शन और भील-समुदाय की कठोर आपत्ति के चलते, वे पाँचों प्रश्न हटा दिये गये थे। तत्कालीन काँग्रेसी मुख्यमन्त्री कमलनाथ को सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त करना पड़ा था। वह काँग्रेसी शासन की अवधि मे आयोग-द्वारा किया-कराया गया नितान्त निन्दनीय कृत्य था।

इन घटिया मानसिकतावाले शासकों की ओर से नियुक्त आयोग के चेअरमैन अपने दायित्व से अलग होते दिखते आ रहे हैं। अन्तत:, इससे हमारे विद्यार्थियों का अहित होता आ रहा है।

● नीचे हमने उस विवादास्पद प्रश्नात्मक वाक्य को उसके उत्तर-विकल्प के साथ ज्यों-का-त्यों दिखाया है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २१ जून, २०२२ ईसवी।)