— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
हममें लाख मतभेद रहे, फिर भी,
मनभेद की अब कोई गुंजाइश न हो।
आवाज़ अब संग-संग उठे अपनी,
फ़र्क़ की अब कोई गुंजाइश न हो।
माना कि पेचोख़म हैं बहुत यहाँ,
भ्रम की अब कोई गुंजाइश न हो।
हवा में अफ़ीम घोलते चेहरे देखो,
सहन करने की अब कोई गुंजाइश न हो।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ जून, २०२० ईसवी)