नज़र का असर तीर-कमान-सा दिखने लगा

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

उसकी आँखों में बियाबान सा दिखने लगा,
पहलू में आते ही श्मशान-सा दिखने लगा।
मुट्ठी में बँधी नज़दीकी रेत-सी सरकती रही,
जाने क्यों बुझा-बुझा अरमान-सा दिखने लगा।
सलीक़ेमन्द लोग ताउम्र मिलते रहे एहतिराम से,
नज़र का असर तीर-कमान-सा दिखने लगा।
रिश्तों का जनाज़: सिपुर्दे ख़ाक कर आया था,
अपनों का सयानापन सामान-सा दिखने लगा।
ज़माने ने ताने दे-देकर बूढ़ा बना दिया उसे,
बेचारे का ज़ेह्न अब नादान-सा दिखने लगा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २७ जून, २०२० ईसवी)