पेश करता हूँ, चन्द मौजूँ (उचित) शेर

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
बेचारा चाँद कसमसाहट में है,
यहाँ ज़लील और जलील भी रहा करते।
दो–
चाँद की निगाहें किस-किस पे इनायत हों,
“एक अनार सौ बीमार”-सा मंज़र दिखा करता यहाँ।
तीन–
चाँद का टुकड़ा-सा तेरा शफ़्फ़ाफ़१ बदन,
कुछ दाग़ ऐसे हैं जो चार चाँद लगा देते हैं।
चार–
माना, तेरा मुखड़ा चाँद-सा दिखा करता,
शाइस्तगी२ से दूर-दूर भला रहती क्यों हो?
पाँच–
‘चाँद-सी’ हो मगर ‘चाँद’ नहीं हो, इसका ख़याल आया कभी?
दोनों में फ़र्क़ करना सीखो, वर्न: ये दुनिया जीने न देगी कभी।

क्लिष्ट शब्दार्थ : १- निर्मल २- शिष्टता।

(सर्वाधिकार सुरक्षित — आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज १६ जून, २०२० ईसवी)