वो सपना था

पहली पहली बार था उससे पहले घर में मैं मेरे यार था ,
 फिर आया ऐसी दुनिया में जहाँ मेरे लिए अंधकार था ।
मंजिल कहीं और थी रास्ता कोई और था इसलिए मैं शांत था ,
उजाले की दुनिया में भी दिख रहा मुझे चारों तरफ अंधकार था ।
अजनबी था अनजाना था लोगो के लिए  मैं बेगाना था,
ढूंढ क्या मैं रहा था मिल नहीं क्यों वो मुझे रहा था ।
जाने कहा खोया कहा मैं था सायद नीद में सोया मैं था,
और तब एक आवाज़ आई थी कोई जगाने आया था ।
देखा तो पता चला पराया था अपना बनाने आया था,
उसमे कुछ खास था उसकी आँखों में प्यार था ।
अब भी मैं शांत था , चारों तरफ अंधकार था,
मुझे लगा सपना था क्योंकि कोई नहीं यहाँ अपना था ।
फिर माना मैंने उसको अपना था क्योंकि तब नही लगा वो सपना था,
खुश मै उस दिन बहुत था कोई अपना जो मिल गया था ।
पर सपना तो सपना था कोई नही अपना था,
जागा मैं नही अभी था गहरी नींद में ही था ।
जागा तो पता चला जो सपना था वो मेरा अपना था,
अब भी मैं शांत था , चारों तरफ अंधकार था ।
मैं अकेला था कोई नहीं यहाँ अपना था ,
 बस एक सपना था जो मेरा अपना था ।

कवि- सीतांशु त्रिपाठी
जिला- सतना मध्यप्रदेश
संपर्क सूत्र 9399851765