अब मैं सच्ची हार चुकी हूँ

वैसे तो जिंदा हूं,
पर अंदर से मर चुकी हूं,
हे जिंदगी !
मैं तुझ से लड़-लड़ के थक चुकी हूं ।
लोग कहते हैं यह कर
वह कर, पर मेरी मां कहती है ,
तू जो कर पाए वह कर ।
कोई ताने दे रहा है ,
कोई बातें सुना रहा है ,
पर मेरे मां-बाप ही है जो ,
मुझे समझा नहीं समझ रहे हैं ।
बाहर से ठीक हूं पर
अंदर से टूट चुकी हूं
मिट्टी के कण-कण की
तरह बिखर चुकी हूं ,अब
मैं सच्ची हार चुकी हूं।

संजना
12वीं कक्षा की छात्रा
राजकीय उत्कृष्ट वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गाहलियां, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश