देखो कलियाँ हैं खिली-खिली

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद


स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा,
हम बैठे थे खाली- खाली !

आम्रमञ्जरी खिल रही हैं,
सुरभित हो रही डाली-डाली!

अरहर ,चणक हैं हिले – मिले,
सरसों झूम रही फ़ूली – फ़ूली!

कोयल रागिनी है छेड़ रही,
सुमधुर ध्वनि है घुली- मिली!

रे! रे! बसंत तुम इतराना,
देखो कलियाँ हैं खिली-खिली!

गर्मी आने को है आतुर,
ठण्ढ़ी है कुछ जली – जली!

मदमस्त मधुप है इठलाता,
उड़ उड़ बैठे वो कली – कली!

मादक ऋतु है विलसित देखो,
मादकता है फ़ैली गली-गली!