हिन्दी माता

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद-

हिन्दी माता की सेवा में,

निज भाव समर्पित करता हूँ ।
अपना सौन्दर्य बढ़ाता हूँ,
माता के ही नित गुण गाता हूँ।
श्रृंगार,करुण औ हास्य संग,
शब्द प्रसून नित अर्पित करता हूँ।।
कहीं रस नीरस न हो जाएं,
कहीं गीत सुमन न खो जाएं।
नित सरित काव्य की बहे यहाँ,
डुबकी उसमें हो मन जो भाए।
अलंकारित शब्द बनें भूषण ,
नित नवगीत का हो रोपण।
उपमा, यमक और श्लेष संग,
अपशब्द कभी न करें दूषण।
कलम को निज वर्जित रखता हूँ।।
माँ साहस इतना तू दे दे मुझे ,
तेरी सेवा में हृदय ये रमा रहे।
न कभी मन में भ्रान्ति उठे ,
तेरी पूजा में ‘जगन’ जमा रहे।
हे! माँ हिन्दी मातृभूमि कान्ति,
तुमसे मिलती हर मन को शान्ति।
तुम्हारे सेवा से प्रतिपल हे!माँ,
अपने हृदय को हर्षित करता हूँ।।