नहीं भूलता बचपना

प्रांशुल त्रिपाठी, रीवा

नहीं भूल पाता मैं बचपना
छोटी-छोटी बातों पर रोना
रोते रोते ही हसने लगना
अपनी बातों पर अडिग रहना
और फिर कुछ समय तक खाना नहीं खाना
नहीं भूल पाता मैं बचपना ।

हर किसी के साथ खेलना
किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं
पराए को भी अपना कहना
और छोटी छोटी सी बातों पे लड़ जाना
नहीं भूल पाता मैं बचपना ।

नीम के पेड़ के नीचे झुंड बनाकर खेलना
धूल मिट्टी से लिपटे रहना
मिट्टी का खाना बनाना
और पत्तों को भी पैसा समझना
नहीं बोल पाता मैं बचपना ।
पानी में कागज की नाव को बहाना
एक दूसरे की नाव को पत्थर मारना
खुद हारने के बाद भी
दूसरों को लूजर कह के चिढ़ाना
नहीं भूल पाता मैं बचपना ।

रात में सितारों को गिनना
चांद को मामा समझना
दादी से कहानी सुनना
और फिर सुनते सुनते ही सो जाना
नहीं भूल पाता मैं बचपना ।

मम्मी के हाथों से खाना खाना
खाने से ज्यादा गिराना
झूम झूम कर खाना
हर किसी के साथ खाना
नहीं भूल पाता मैं बचपना ।

रोज स्कूल ना जाने का बहाना
नहाने पर भी रोने लगना
मम्मी के मरने से पहले ही चिल्लाना
फिर दादी के पास जाकर छिप जाना
नहीं भूल पाता में बचपना ।