समय पूर्व पक जाओगे

जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद)

अधनंगे को नंगा करके ,पहना दो दया का चोला,
आत्मबल न जगा सके,उठाए एहसानों का झोला।
ऐसा कोई एक न रखो,जिसमें हो दृढ़ता औ साहस,
जिससे सदा ही खेल चले, जिसमें भरा हो दुस्साहस।
आपातकाल के दौर से ही,राजनीति का ये हथियार,
अगणित प्रतिभाओं पर, प्रतिपल करता रहता वार।
मशीन वही प्राचीन अभी भी, कलपुर्जे  इतराते हैं।
ऐसे स्वार्थी वंशों के दंशों से, राष्ट्रवंश  शरमाते  हैं।।
बिन टाँगों के साहस भर से, आसमाँ को नीचे लाना है।
दूषित हुए अगणित गिद्धों से, भारत  राष्ट्र  बचाना है।।
सीमित हो गईं परम्पराएँ, परिमित हो गई क्षमता है।
वपित हुए नित नव विष से, अंकुरित नई विषमता है।।
जननी, भगिनी नहीं सुरक्षित, फिर भी चौड़ी छाती है।
दुल्हन रोये मण्डप नीचे, जश्न  मनाते  सब बाराती हैं।।
सूरज  को  गह लिया राहु ने, घेरे  घना  अँधेरा है।
सत्ता  केवल  भोग  करे, योद्धा भूखे करे सवेरा है।।
अर्द्धज्ञान का बीज न बो, संरक्षण करते थक जाओगे।
ज्वालाओं की दिव्य ताप से, समय पूर्व पक जाओगे।।