यादों की एक कॉपी

आखिरी भ्रम था
छटने लगा धुंध परछाईयों से
तुम मेरे साथ हो !

अजीब किनारे से चुप होकर
प्रतिक्रिया देने के लिए हर बार
एक सीधा सवाल कर जाते हो ।

आखिरी भ्रम था
ये सीधी सरल जिंदगी अभी
दो कदम चलने की वेला में
किनारों पर तुम्हें चुपचाप बैठ जाना
एक सीधा सवाल कर जाते हो

साथ चलने की आदत न रही
खूब रही , तालमेल बिठाने की

कभी -कभी खुद से तुलना कभी
अनजान अतुलनीय लोगों
कहाँ समानता मिल सकेगी
हर इंसान होते है

आखिरी भ्रम था
दौड़ में एक पंक्ति साथ होती है
आखिरी वक्त में इंसान अकेला होता है
जब उसे साथ की जरूरत होती है
एक सीधा सवाल कर जाते हो ।

आखिरी भ्रम था
मेरा तुम साथ हो ।


–आकांक्षा मिश्रा